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स्वतंत्रता सेनानियों के वारिसों का ‘सम्मान’ या ‘अपमान’

पहले बांटे निमंत्रण पत्र, फिर घरों में भेज दी शॉल
डबवाली में स्वतंत्रता सेनानी के घर शॉल देने पहुंचे पटवारी देवी लाल।  -निस
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स्वतंत्रता दिवस पर स्वतंत्रता सेनानियों के वारिसों के सम्मान का मामला विवाद में बदल गया। उपमंडल प्रशासन ने पहले तो इन परिवारों को उपमंडल स्तरीय मुख्य समारोह में बुलाने के लिए बाकायदा निमंत्रण पत्र बांटे, लेकिन कुछ ही घंटों बाद परंपरा बदलते हुए घर-घर शॉल भिजवा दिए। वारिसों ने इसे सम्मान नहीं बल्कि अपमान बताया। अब 24 अगस्त को यूथ मैराथन में मुख्यमंत्री के समक्ष यह मुद्दा उठाने की तैयारी है, जिसमें घोर अपमान के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की जाएगी। बता दें कि 14 अगस्त की शाम तहसील कार्यालय से कानूनगो सुखमंदर सिंह ने वारिसों को निमंत्रण पत्र दिए, लेकिन उसी शाम करीब 6:20 बजे आदेश बदल गए और पटवारी देवी लाल को घर-घर जाकर शॉल देने भेज दिया गया। जब वारिसों ने पटवारी से पूछा  कि ऐसा कौन सा आपातकाल आ गया कि रातों-रात शॉल भेजने पड़े तो उनका जवाब था कि साहिब के आदेश हैं।

स्वतंत्रता सेनानी गुरदेव सिंह शांत के परिवार ने तो शॉल समेत पटवारी को बैरंग लौटा दिया और फोन पर तहसील अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाई। परिवार ने सवाल उठाया कि कल समारोह में ऐसा क्या हो रहा है कि मंच पर सम्मानित करने में दिक्कत आएगी? उल्लेखनीय है कि डबवाली में दशकों से यह परंपरा रही है कि स्वतंत्रता सेनानियों व वारिसों को मुख्यातिथि द्वारा सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाता रहा है। 15 अगस्त को आयोजित उपमंडल समारोह में भी वारिसों ने यह मुद्दा मंच से उठाया। स्वतंत्रता सेनानी बुध राम की सुपुत्री परमजीत यादव, लाला रुलदू राम के पुत्र तरसेम गर्ग और गुरदेव सिंह शांत के पुत्र इकबाल सिंह ने कहा कि घरों में शॉल भेज कर खानापूर्ति की गई है। क्या रात में कोई जंग छिड़ गई थी कि हमें मंच से दूर रखा गया? वहीं, वैध रामदयाल के सुपुत्र नरिंदर शर्मा ने कार्यक्रम का बहिष्कार किया। वहीं नायब तहसीलदार रवि कुमार ने कहा कि जब मैं रेवाड़ी के बावल में तैनात था तो कोरोना काल में एक दिन पहले ही शॉल स्वतंत्रता सेनानियों के घर भेज देते थे। यहां भी वैसा ही किया गया।

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‘झंझट’ निपटाने का ‘ट्रायल रन’ था

सूत्रों के मुताबिक तहसील कार्यालय में यह सोच बन रही थी कि वारिसों को बुलाना, सीटें आरक्षित करना और मंच पर सम्मान करना ‘झंझट’ का काम है। घर-घर शॉल भेजना एक तरह से ‘ट्रायल रन’ था ताकि भविष्य में सार्वजनिक सम्मान की परंपरा को खत्म किया जा सके। एसडीएम अर्पित संगल ने कहा कि मामले की जांच कर कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।

 

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