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विभाजन को याद कर आज भी आ जाते हैं आंसू

विभाजन विभीषिका कार्यक्रम की तैयारी के लिए बैठक, विधायक प्रमोद विज बोले
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पानीपत में सोमवार को बैठक में मौजूद विधायक प्रमोद विज। -वाप्र
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देश की भावी पीढ़ी को देश के अतीत का परिचय करवाने और राष्ट्र के प्रति और अधिक जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए विभाजन विभीषिका कार्यक्रम श्रृंखला की तैयारियों को लेकर जिला स्तरीय बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में शहरी विधायक प्रमोद विज मौजूद थे। उन्होंने कहा कि जन्मभूमि और अपना बचपन प्रत्येक व्यक्ति के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। जो व्यक्ति जड़ों से जुड़कर चलता है, वही सफल होता है। उन्होंने अपने अतीत की याद को ताजा करते हुए कहा कि विभाजन विभीषिका का दंश जिन व्यक्तियों ने सहन किया है, वही जानते हैं कि विभाजन का दर्द या विभाजन की त्रासदी कितनी कठिन होती है।  उन्होंने कहा कि 1947 में विभाजन के समय विघटनकारी व्यक्तियों द्वारा निर्दोष लोगों की निर्ममता से हत्या की गई| इस विभाजन विभीषिका में लगभग 11 लाख लोगों की हत्या ही नहीं की गई बल्कि इतने ही लोगों को यातनाओं का सामना करना पड़ा | जब हमारे बुजुर्ग इस घटना को बताते हैं तो भावावेग में आंखों से आंसू रोके नहीं रुकते। महापौर कोमल सैनी ने कहा कि विभाजन विभीषिका के ग्यारह लाख से अधिक अमर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए भाजपा कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। भाजपा जिला अध्यक्ष दुष्यंत भट्ट कहा कि विभाजन विभीषिका से पीड़ित 75 अथवा इससे अधिक आयु के सभी नागरिकों को सम्मानित करने का निर्णय भाजपा नेतृत्व ने लिया है| 8 अगस्त को एसडी महाविद्यालय में जिला स्तरीय वरिष्ठ नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया जाएगा| इस कार्यक्रम में विभाजन विभीषिका विषय पर प्रदर्शनी का आयोजन होगा| संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा और विभाजन के ज्ञात-अज्ञात अमर शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी जाएगी और 14 अगस्त को फरीदाबाद के दशहरा ग्राउंड में प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।

विभाजन संवेदनहीन, कृत्रिम त्रासदी

डबवाली (निस) :

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हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन के चेयरमैन और ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के राज्य संयोजक भारत भूषण मिड्ढा ने कहा कि भारत का विभाजन कृत्रिम और संवेदनहीन निर्णय था, जिसने लाखों परिवारों को बर्बादी की ओर धकेल दिया। सोमवार को पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर के विरोध के बावजूद सत्ता की जल्दबाज़ी में विभाजन स्वीकार किया गया। अंग्रेज बैरिस्टर रेडक्लिफ़ ने जो रेखा खींची, वह केवल नक्शे पर नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के दिलों पर थी। 1.45 करोड़ लोगों को घर छोड़ना पड़ा, जिनमें से 10 लाख मारे गए।

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