12 गांवों के किसानों की जींद में पंचायत आज
सफीदों, अलेवा व जींद खंड के जिन 12 गांवों हसनपुर, मांडी, अलेवा, दिलुवाला, गोयां, खरकगादियां, मोहम्मदखेड़ा, बनियाखेड़ा, जामनी, ढाटरथ व अलंजोगिखेड़ा की जमीन सरकार ने आईएमटी स्थापित करने के लिए चुनी है उन गांवों के प्रमुख किसानों की एक बैठक बुधवार को जींद की जाट धर्मशाला में बुलाई गई है। आज इसी सिलसिले में जनसंपर्क में लगे किसानों की कमेटी के एक प्रतिनिधि सुशील नरवाल ने बताया कि इन गांवों में छोटे गांव से दो व बड़े गांव से पांच किसान प्रतिनिधि शामिल करके एक कमेटी बनाई गई है जिसका निर्णय यह है कि किसी भी कीमत पर आईएमटी को जमीन देने का विरोध किया जाएगा। सुशील नरवाल ने कहा कि जमीन के अधिग्रहण के साथ सरकार ने भूमालिक के हित में कोई ठोस नीति नहीं बनाई है।
सुशील का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि उपजाऊ जमीनों का औद्योगिकीकरण के लिए अधिग्रहण नहीं किया जा सकता लेकिन इसके बावजूद सरकार मनमाने फैसले ले रही है। उन्होंने कहा कि इन गांवों की 12 हजार एकड़ जमीन के लिए भूमालिकों से सहमति सरकार के एप में मांगी गई है जिसमें मुश्किल से दर्जन भर किसानों ने ही सहमति दी है जबकि मनमाने तरीके से किसानों की जमीन काबू करने को उस पोर्टल पर किसानों द्वारा 30 हजार एकड़ की सहमति मिली दिखाई गई है जो सरासर नाजायज है। उन्होंने बताया कि जींद की बैठक में उनकी कमेटी अहम फैसला लेगी और हर हाल में आईएमटी का विरोध किया जाएगा।
अधिग्रहण के बाद ज्यादातर किसान हुए बर्बाद
सुशील का कहना है कि अब तक अधिग्रहीत जमीनों के परिवारों के आंकड़े यह स्पष्ट कर रहे हैं कि जोत की भूमि के अधिग्रहण के बाद ज्यादातर किसान परिवार बर्बाद हो रहे हैं। सुशील नरवाल ने बताया कि एक्सप्रेस-वे के लिए अलेवा के 170 किसानों की जमीन अधिकृत की गई जिनमें से केवल तीन परिवार ही मुआवजे की राशि से कहीं कोई जमीन खरीद पाए हैं जबकि शेष परिवार बर्बाद हो गए हैं। उन्होंने बताया कि इसी तरह खांडा गांव की 275 एकड़ 90 परिवारों की जमीन जमीन एक्सप्रेस-वे के लिए अधिग्रहीत की गई थी और इन 90 परिवारों में कुल दो या तीन परिवार की कहीं ना कहीं जमीन मुआवजा राशि से खरीद पाए हैं। ऐसे परिवार भी जमीन बाहर लेने के कारण धोखाधड़ी के शिकार हो गए जिनमें से कई वापस लौट आए हैं।