3 साल तक पंचायत बनकर भी नगरपालिका रही नीलोखेड़ी
सतीश जोशी/निस
नीलोखेड़ी, 26 फरवरी
1950 के दशक में पं. जवाहर लाल नेहरु द्वारा बसाया गया शहर नीलोखेड़ी वर्तमान में नगरपालिका के रूप में जाना जाता है, लेकिन ये शहर करीब 3 साल तक पंचायत होने का कड़वा अनुभव भी कर चुका है। कहा जाता है कि वर्ष 2000 में ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व में बनी प्रदेश सरकार ने आबादी के आधार पर नीलोखेड़ी नगरपालिका को भंग कर इसे पंचायत का दर्जा दे दिया था। जिसके चलते लोगों द्वारा तत्कालीन विधायक दिवंगत धर्मपाल सिद्धपुर के नेतृत्व में करीबन 3 वर्षों तक संघर्ष कर इसे पुन: नगरपालिका का दर्जा दिलाया था। इन 3 वर्षों में सरकार ने पंचायती चुनाव भी नहीं करवाए। जिसके चलते नीलोखेड़ी के बाशिंदों को मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरसना पड़ा था।
वर्ष 2000 में होने वाले कार्यकाल में प्रधान रहे नरिन्द्र शर्मा ने बताया कि उनका कार्यकाल समाप्त होने के कुछ दिनों बाद ही नपा भंग होने पर तत्कालीन बीडीपीओ को शहर का नियंत्रण दे दिया गया। जिसके चलते शहरवासियों को किसी प्रकार की समस्या के लिए बीडीपीओ के पास जाना पड़ता था, लेकिन पहले से खंड के दर्जनों गांवों का कार्य संभाल रहे बीडीपीओ के व्यस्त होने पर लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। समाजसेवी नारायणदास वर्मा तथा पूर्व नपा उपाध्यक्ष शकुन्तला आहूजा ने बताया कि लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इसके अतिरिक्त लोगों को अपने शहरी होने के रुतबे को भी ग्रामीण में तब्दील होना नाखुशगवार गुजरा। नतीजतन लोगों ने मांग उठानी शुरू कर दी कि पुन: नपा बहाल करते हुए नीलोखेड़ी को नपा का ही दर्जा दिया जाए। लोग तत्कालीन विधायक धर्मपाल सीधपुर से मिलकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए जुटने लगे। जिसके चलते शहर के प्रतिनिधिमंडल ने विधायक के नेतृत्व में दर्जनों बार चंडीगढ़ जाकर मुख्यमंत्री से मिलकर गुहार लगाई थी। लोगों के प्रयास रंग लाए और 2003 में नीलोखेड़ी को पुन: नगरपालिका का दर्जा देकर शहर के विकास का जिम्मा पार्षदों के हाथों सौंप दिया गया था।
1950 में जवाहर लाल नेहरु ने विकसित करने की बनाई थी योजना
कस्बे से मात्र 1 किमी़ दूरी पर स्थित पुराना नीलोखेड़ी देश की स्वतंत्रता से पूर्व बसा हुआ एक छोटा सा गांव है। देश को स्वतंत्रता मिलने पर पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए दिल्ली अम्बाला मुख्य रेलवे लाइन और जीटी रोड स्थित इस स्थान पर शरणार्थियों के लिए शिविर लगाए गए थे। जिसके चलते इसका नाम भी नीलोखेड़ी ही रखा गया। बुजुर्ग बताते हैं कि उस दौर में यहां घना जंगल था। जिसे लोगों ने कड़ी मेहनत से रहने लायक जगह बनाई। 1950 में जब जवाहर लाल नेहरु शरणार्थियों से मिलने के लिए यहां आए तो यहां कि भौगोलिक परिस्थितियां और लोगों के जज्बे और जुनून को देखकर इसे अपनी बेटी की संज्ञा दी थी। नीलोखेड़ी, फरीदाबाद और पंजाब के शहर राजपुरा को विकसित करने की योजना बनाई। शुरुआती दौर में राज्य और केन्द्र सरकार के एक दर्जन संस्थानों की स्थापना की गई, लेकिन नीलोखेड़़ी साल दर साल राजनीति का शिकार होता चला गया। नतीजतन अधिकांश संस्थान या तो बंद हो गए या स्थानातंरित हो गए।