भारतीय संस्कृति में राष्ट्र रक्षा सर्वोच्च कर्तव्य : चन्द्रकान्त आर्य
कार्यक्रम में पर्यावरण शुद्धि और समृद्धि हेतु यज्ञ-हवन का आयोजन किया गया। साप्ताहिक सत्संग में धर्मपाल, डॉ. प्रताप सिंह और यशपाल आर्य ने भजन व गीतों के माध्यम से ईश्वर स्तुति, प्रार्थना और उपासना प्रस्तुत की। वक्ताओं ने महर्षि दयानंद सरस्वती और स्वामी श्रद्धानंद जी के समाज एवं राष्ट्र निर्माण कार्यों का भी स्मरण किया।
व्याख्यान में जयपाल सिंह आर्य ने कहा कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान परंपरा आत्मा, परमात्मा और प्रकृति पर आधारित रही है। गुरुकुलीय शिक्षा से चरित्रवान और विद्वान मनुष्य का निर्माण होता था, जबकि आज की शिक्षा केवल भोग-विलास और धनार्जन तक सीमित है, जिससे शारीरिक, मानसिक और सांस्कृतिक विकास अवरुद्ध हो रहा है।
उन्होंने सहशिक्षा को चरित्रहीनता का कारण बताते हुए सामाजिक पतन की आशंका जताई। राष्ट्र सुरक्षा पर चिंता व्यक्त करते हुए वक्ताओं ने कहा कि रोहिंग्या, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी घुसपैठिए भ्रष्टाचार से मतपत्र और नागरिकता प्राप्त कर भारत के संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। यह न केवल बेरोजगारी और बेकारी बढ़ा रहा है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा है।
इस अवसर पर मिथिलेश शास्त्री ने महाभारत की विदुर नीति का उल्लेख करते हुए धर्म से अर्जित धन, पंचमहायज्ञ, निरोगी काया, आज्ञाकारी पुत्र और विद्या को जीवन के वास्तविक सुख बताया। कार्यक्रम में वेदपाल, रामकुमार, संजीव, रामप्रताप सहित अनेक आर्यजन उपस्थित रहे।