कैथल की पहचान 'भाई की बावड़ी', अब नए जीवन की तैयारी
सरकार ने जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण के लिए 4.46 करोड़ का बजट किया मंजूर
दीवारों की मरम्मत व गुबंद का होगा पुनर्निमाण, लाइटिंग के साथ बैठने का भी किया जाएगा प्रबंध
कैथल की गलियों से गुजरते हुए जब अचानक आपके सामने ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरी ‘भाई की बावड़ी’ आ खड़ी होती है तो लगता है जैसे किसी टाइम मशीन से सीधे अतीत में पहुंच गए हों। मोटे पत्थरों और लखौरी ईंटों से बनी यह संरचना, कुएं तक जाती लंबी-लंबी सीढ़ियां और ऊपर खड़ा गुंबद... सब मिलकर उस दौर की तस्वीर खींच देते हैं, जब यह बावड़ी सिर्फ पानी का स्रोत नहीं थी, बल्कि सामाजिक जीवन का केंद्र हुआ करती थी। यहां लोग पानी भरने आते, घंटों बैठकर गपशप करते, राहगीर गर्मी से राहत पाते और बच्चे इसकी सीढ़ियों पर खेलते। बुजुर्ग आज भी कहते हैं कि ‘भाई की बावड़ी’ कैथल की सांसों में बसती थी। आज यह बावड़ी जर्जर हालत में खड़ी है। दीवारों पर दरारें हैं, सीढ़ियों पर समय की धूल जमी है और गुंबद टूटकर बिखर चुका है, लेकिन अब इसके दिनों को बदलने की तैयारी है। सरकार ने इसके जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण के लिए 4 करोड़ 46 लाख रुपये का बजट मंजूर किया है। अगले 16 महीनों में इसे फिर से उसके पुराने वैभव के साथ खड़ा किया जाएगा।
इतिहास की धड़कन
कहा जाता है कि 1767 से 1843 ईस्वी के बीच जब भाई शासक कैथल की सत्ता संभालते थे, तो इस बावड़ी का निर्माण हुआ था। उस दौर में यह केवल पानी भरने का स्थान नहीं थी। यह शहर की धड़कन थी। महिलाएं घड़े लेकर आतीं, पुरुष बातचीत करते और राहगीर यहां आकर ठंडी हवाओं में चैन पाते। शाम ढले यहां की रौनक देखने लायक होती। बुजुर्ग बताते हैं कि गर्मियों में जब प्यास से गला सूखता तो 'भाई की बावड़ी' का ठंडा पानी जीवनदान जैसा लगता।
स्थापत्य का चमत्कार
यह तीन मंज़िला बावड़ी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। लखौरी ईंटों और चूने-सुरखी से बनी मोटी दीवारें, कुएं तक जाती गहरी सीढ़ियां, सजावटी दीवारें और ऊपर का गुंबद इसे विशिष्ट बनाते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह केवल जल संरचना नहीं, बल्कि उस दौर की ‘जल प्रबंधन तकनीक’ का सजीव उदाहरण है। यह दिखाती है कि हमारे पूर्वज पानी को सहेजने और समाज को उपलब्ध कराने में कितने समझदार और दूरदर्शी थे।
आज की तस्वीर
आज जब कोई यात्री या स्थानीय निवासी यहां पहुंचता है तो उसे अतीत की झलक तो मिलती है, लेकिन साथ ही उपेक्षा का दर्द भी दिखता है। दीवारें झड़ चुकी हैं, सीढ़ियां जगह-जगह टूटी हैं, गुंबद का नामोनिशान मिट चुका है और परिसर कचरे व गंदगी से पट चुका है। सामाजिक संस्थाएं और स्थानीय लोग लंबे समय से इसके संरक्षण की मांग कर रहे थे।
नया जीवन, नई उम्मीद
पुरातत्व विभाग की योजना के अनुसार, इसकी दीवारों की मरम्मत होगी। गुंबद का पुनर्निर्माण किया जाएगा। सीढ़ियों और जॉइंट्स को मजबूत किया जाएगा। साथ ही, सफाई, लाइटिंग और बैठने की व्यवस्था की जाएगी। कल्पना कीजिए- जब शाम ढले सीढ़ियों से होते हुए रोशनी की किरणें कुएं तक उतरेंगी, तो यह बावड़ी सिर्फ इतिहास की निशानी नहीं, बल्कि ‘जीवंत पर्यटन स्थल’ बन जाएगी। सरकार का कहना है कि इस बावड़ी के जीर्णोद्धार से न केवल कैथल को अपनी खोई धरोहर वापस मिलेगी, बल्कि यह शहर को पर्यटन मानचित्र पर भी नई पहचान दिलाएगी।
अतीत से भविष्य तक
निर्माण काल: 1767-1843 (भाई शासकों का समय)
संरचना: तीन मंज़िला, लखौरी ईंट और चूने-सुरखी से निर्मित
भूमिका: पानी का स्रोत और सामाजिक जीवन का केंद्र
वर्तमान योजना: 4.46 करोड़ से जीर्णोद्धार, 16 माह में पूरा
भविष्य: स्थानीय धरोहर से लेकर पर्यटन आकर्षण तक का सफर
सरकार का रुख
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री डॉ़ अरविंद शर्मा कहते हैं कि मुख्यमंत्री नायब सैनी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने ऐतिहासिक धरोहरों को संजोने का बीड़ा उठाया है। भाई की बावड़ी के लिए मंजूर बजट से न केवल मरम्मत और सौंदर्यीकरण होगा, बल्कि कैथल को एक ऐसा स्मारक मिलेगा जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत से जोड़ने का काम करेगा।
इस समाचार के साथ भाई की बावड़ी के पुराने फोटो के साथ चल रहे मरम्मत कार्यों के फोटो भी हैं। साथ में, पर्यटन व संस्कृति मंत्री अरविंद शर्मा का फोटो भी है।