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' एक प्रदेश-एक कोर्स, एक फीस' की नीति लागू करें : कृष्ण सातरोड

जब देश में ' एक राष्ट्र, एक चुनाव ' और 'वन रैंक, वन पेंशन' जैसे विचारों पर चर्चा हो रही है, तब  ' एक प्रदेश-एक कोर्स , एक फीस' की अवधारणा को भी गंभीरता से अपनाने की आवश्यकता है। यह...
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कांग्रेस भवन में पत्रकार वार्ता को संबोधित हुए कृष्ण सातरोड़ व अन्य। -हप्र
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जब देश में ' एक राष्ट्र, एक चुनाव ' और 'वन रैंक, वन पेंशन' जैसे विचारों पर चर्चा हो रही है, तब  ' एक प्रदेश-एक कोर्स , एक फीस' की अवधारणा को भी गंभीरता से अपनाने की आवश्यकता है।

यह बात राजगढ़ रोड स्थित कांग्रेस भवन में भारतीय युवा कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय सचिव एवं पूर्व जिला पार्षद कृष्ण सातरोड़ सहित अन्य कांग्रेस नेताओं ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कही। उन्होंने कहा कि हरियाणा राज्य में वर्तमान में 18 सरकारी विश्वविद्यालय हैं, जो सभी स्टेट लेजिस्लेटिव एक्ट के अंतर्गत स्थापित हुए हैं। ये विश्वविद्यालय पूरी तरह से राज्य सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त हैं। पूर्व में राज्य सरकार इन विश्वविद्यालयों को अनुदान (ग्रांट) प्रदान करती थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वर्तमान सरकार ने इन संस्थानों को अनुदान की बजाय ऋण (लोन) देना आरंभ कर दिया है।

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एक प्रदेश- एक कोर्स क्यों जरूरी ?

उन्होंने कहा कि इस नीति परिवर्तन से यह आशंका उत्पन्न होती है कि आने वाले वर्षों में जब यह ऋण राशि अत्यधिक बढ़ जाएगी, तब इन विश्वविद्यालयों को निजीकरण की दिशा में ढकेला जा सकता है। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि जब सरकार के पास विश्वविद्यालयों को अनुदान देने के लिए संसाधन नहीं हैं, तो करदाताओं का पैसा आखिर जा कहां रहा है?

कृष्ण सातरोड़ ने कहा कि यह भी एक गंभीर विषय है कि जब सभी विश्वविद्यालय राज्य सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त हैं, तो समान पाठ्यक्रमों की फीस में इतना भारी अंतर क्यों है ? उदाहरण के तौर पर एमएससी मैथेमेटिक्स कोर्स की एक वर्ष की फीस गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय (जीजेयू), हिसार में 50,000 रुपये है, जबकि इसी कोर्स की फीस राज्य सरकार के अधीन किसी कॉलेज में 6,000 रुपये और चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय (सीडीएलयू), सिरसा में 20,000 रुपये है। जब प्रदेश एक है, शिक्षक नियुक्ति की योग्यता समान है, प्रयोगशालाएं यूजीसी एंड एआईसीटीई के मानकों पर आधारित हैं, तो फिर फीस समान क्यों नहीं हो सकती ?

समान फीस लागू करने के लाभ

उन्होंने बताया कि विगत दो वर्षों में जीजेयू, हिसार द्वारा कुछ कोर्सेज की फीस में 40 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की गई है। उदाहरण के तौर पर, एलएलबी कोर्स की फीस पिछले वर्ष 45,000 रुपये थी, जिसे इस वर्ष बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दिया गया, यह लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि है। अन्य कोर्सेज में भी 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। क्या पिछले एक वर्ष में किसानों की फसलों के दाम 60 प्रतिशत बढ़े हैं ? क्या श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी या कर्मचारियों के वेतन में इतनी ही बढ़ोतरी हुई है? जब आम जन की आय में कोई विशेष बढ़ोतरी नहीं हुई है, तो फिर सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की फीस में इतनी तेज वृद्धि का औचित्य क्या है?

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