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मैं अम्बाला हूं....जहां शरणार्थियों के साथ संस्थाएं भी स्थानांतरित हुईं

भारत-पाकिस्तान विभाजन की कहानी
विभाजन के समय की अंबाला शहर के बलदेव नगर की फाइल फोटो।
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हरियाणा का अम्बाला जिला, भारत-पाकिस्तान विभाजन के सबसे मार्मिक अध्याय का हिस्सा रहा है। 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तो अम्बाला में देश का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर ‘बलदेव नगर शरणार्थी कैंप’ बसाया गया, जिसने लाखों विस्थापितों को अपने आंचल में जगह दी। अम्बाला इतिहास के विशेषज्ञ डॉ. उदय वीर सिंह के मुताबिक 1,94,403 शरणार्थी अम्बाला आए थे। अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड के निदेशक रहे सरदारी लाल पराशर, तब कैंप कमांडर थे। उन्होंने वहां लोगों की पीड़ा को रेखाचित्रों में उकेरा। उनकी मूर्ति ‘रिफ्यूजी वूमन’ विशेष रूप से भावुक कर देने वाली है, क्योंकि इसे बलदेव नगर कैंप की मिट्टी से बनाया गया था। ये सभी कलाकृतियां आज भी अमृतसर के पार्टिशन म्यूज़ियम में प्रदर्शित हैं। जानकार कहते हैं विभाजन के बाद अम्बाला स्टेशन पर शरणार्थियों से भरी ट्रेनें लगातार पहुंचने लगीं। कई परिवार महीनों तक प्लेटफार्म पर ही ठहरे रहे, फिर उन्हें बलदेव नगर कैंप में बसाया गया। कई मशहूर हस्तियां भी उस मंजर का गवाह रहीं। भारतीय सिनेमा जगत के विख्यात अभिनेता स्व. सुनील दत्त (असली नाम बलराज), जो 1929 में पाकिस्तान के खुर्द में जन्मे थे, अक्सर याद करते थे कि उन्होंने और उनके परिवार ने अम्बाला रेलवे स्टेशन पर कैसी कठिनाइयां झेलीं। प्रेम चौपड़ा भी अम्बाला स्टेशन आये। आज 100 वर्ष के हो चुके प्रसिद्ध चित्रकार कृषेन खन्ना ने अम्बाला स्टेशन के अपने दर्दनाक अनुभव को अपनी मशहूर पेंटिंग ‘रिफ्यूजी ट्रेन 16 हॉवर्स लेट’ में उकेरा है।

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ये संस्थाएं भी पहुंची

द ट्रिब्यून अखबार

समाजसेवी स. दयाल सिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 में लाहौर से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया था। विभाजन के बाद द ट्रिब्यून का कार्यालय पहले शिमला और फिर 1948 में अम्बाला कैंट में स्थानांतरित हुआ और अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है। ‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई।

डीएवी कॉलेज (लाहौर) 

डीएवी कॉलेज का िचत्र

इस कॉलेज की स्थापना 1886 में पाकिस्तान के लाहौर में आर्य समाज ने की थी। बंटवारे के बाद 1948 में इसकी पुनर्स्थापना अम्बाला शहर में हुई। यहां प्रिंसिपल राजीव महाजन ने बताया कि शहीद भगत सिंह इसी कॉलेज से पढ़े थे। सनातन धर्म कॉलेज (लाहौर) व एसडी संस्कृत कॉलेज की स्थापना भी लाहौर में 1916 में हुई थी और बंटवारे के बाद ये दोनों कॉलेज 1948 में अम्बाला छावनी के जगाधरी रोड पर पुनर्स्थापित हुए। इनके अलावा देव समाज कॉलेज (लाहौर), एसए जैन मॉडल स्कूल (गुजरांवाला) व सोहन लाल डीएवी कॉलेज (लाहौर) भी विभाजन के बाद 1948 में अम्बाला शहर में स्थापित हुए।

यहां अलॉट हुईं संपत्तियां

डॉ. यूवी सिंह का कहना है कि 14 अगस्त 1947 के विभाजन पर नजर डालें तो पंजाब का 62 प्रतिशत भाग पाकिस्तान को और 38 प्रतिशत भाग भारत को मिला। यानी 16 जिले पाकिस्तान को और अम्बाला समेत 13 जिले भारत को मिले। यहां पहुंचे शरणार्थियों को अम्बाला, जगाधरी, यमुनागनर, पानीपत, रोपड़ व खरड़ समेत देहात के कई गांवों में बसाया गया। सुनील दत्त के परिवार को भी यमुनानगर में जगह अलॉट हुई। अम्बाला शहर व कैंट में बसे लोग तो आज भी पाकिस्तान के हिस्से के पंजाब के शहरों के नाम अपनी दुकानें के नाम में समेटे हुए हैं, इनमें गुजरांवाला ज्वेलर्स, सरगोधा स्वीट्स, सियालकोट हाउस, पेशावर दी हट्टी व कराची स्टोर हैं।

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