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हिमालय की हवा भी तो लहू शीतल न कर पायी...

डॉ. सोनिया त्रिखा खुल्लर ने की मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत
पंचकूला में शुक्रवार को कारगिल विजय की पूर्व संध्या पर आयोजित कवि सम्मेलन में उपस्थित मुख्य अतिथि डॉ. सोनिया त्रिखा खुल्लर। -हप्र
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हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के उर्दू प्रकोष्ठ द्वारा महाराजा दाहिर सेन सभागार में शुक्रवार को कारगिल विजय की पूर्व संध्या पर एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि डॉ. सोनिया त्रिखा खुल्लर सदस्य हरियाणा लोक सेवा आयोग, डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री कार्यकारी उपाध्यक्ष, मनजीत सिंह सदस्य सचिव अकादमी, विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे डॉ. मनमोहन सिंह आईपीएस (सेवानिवृत्त) अध्यक्ष चंडीगढ़ साहित्य अकादमी, हिंदी एवं हरियाणवी प्रकोष्ठ के निदेशक, डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी, डॉ. सीडीएस कौशल, निदेशक संस्कृत प्रकोष्ठ, हरपाल सिंह, निदेशक पंजाबी प्रकोष्ठ एवं उर्दू प्रकोष्ठ के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा ने दीप प्रज्वलन तथा मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कवि-सम्मेलन की शुरुआत की।

कवि-सम्मेलन की शुरुआत कवयित्री शहनाज भारती ने कहा- इस लिए सर बुलंद है मेरा/मां की तिरछी नजऱ से डरती हूं। सुरेंद्र बंसल ने पाकिस्तान पर व्यंग्य करते हुए कहा - हमेशा आए मगर हम उसी की बातों में/चलन ही जिसका हमेशा कहा न करना था। कवि दिनेश शर्मा ने कारगिल के शहीदों को नमन करते हुए कहा- हिमालय की हवा भी तो लहू शीतल न कर पायी/वो बर्फीली सभी चोटी बनी कदमों की अनुयायी। कुरुक्षेत्र से पधारे गज़़लकार डॉ. कुमार विनोद ने कहा- बारिशों को भी कभी हम खत लिखेंगे/शुक्रिया उनका अदा दिल से करेंगे।

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डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने वक्तव्य में कारगिल युद्ध की पुष्ठभूमि तथा कारगिल क्षेत्र की भौगोलिक स्थित पर विस्तार से चर्चा की और उन्होंने काव्यपाठ भी किया।

कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि डॉ. सोनिया खुल्लर ने कवि-सम्मेलन को ऐतिहासिक बताया। डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कारगिल के शहीदों को याद करते हुए सभी कवियों का आभार व्यक्त किया।

उर्दू प्रकोष्ठ के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा ने कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथियों का स्वागत करते हुए कारगिल युद्ध की परिस्थितियों पर विचार व्यक्त किये।

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