मारकंडा नदी में बार-बार पानी आने से गांवों में बन रहे बाढ़ जैसे हालात
मारकंडा नदी में बार-बार पानी आने व बरसात के कारण शाहाबाद क्षेत्र के कई गांवों में फसलें बर्बाद हो गई हैं और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। बुधवार देर शाम भी मारकंडा नदी में पहाड़ों से बरसात का पानी आना शुरू हो गया जो रात तक बढ़कर 7500 क्यूसिक तक पहुंच गया। बृहस्पतिवार सुबह पानी आगे निकलना शुरू हो गया और समाचार लिखे जाने तक मात्र 3 हजार क्यूसिक पानी नदी में बह रहा था। गेज रीडर रविंद्र ने बताया कि यह पहाड़ों में हुई वर्षा का पानी है जो कालाअम्ब व मुलाना से मारकंडा नदी में पहुंचता है। उन्होंने बताया कि आज कालाअम्ब से 5863 व मुलाना में 7500 क्यूसिक पानी बह रहा था। ऐसे में देर शाम तक और पानी आने की उम्मीद है। पिछले वर्ष बरसात के दिनों में मारकंडा नदी में 33 हजार 588 क्यूसिक पानी अधिकतम आया था जिसमें व्यापक नुकसान पहुंचाया था। इस वर्ष अब तक 23 हजार क्यूसिक पानी अधिकतम आया है। हालांकि मारकंडा नदी में अनेक बार पानी आ चुका है जिससे आसपास का सारा ऐरिया जलमग्र है। शाहाबाद के निकटवर्ती गांव तंगौर, कठवा व कलसाना में गंभीर स्थिति बनी हुई है। इन गांवों में गन्ने की 100 एकड़ में खड़ी फसल खराब हो गई है। सैंकड़ों एकड़ में पानी खड़ा होने के कारण धान की रोपाई नहीं हो पाई। कठवा के पूर्व सरपंच अमरिंद्र सिंह ने बताया कि हर वर्ष इस इलाके के किसान प्रशासन व सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाते हैं। केवल आश्वासन मिलते हैं और जमीनी हकीकत शून्य है। उन्होंने आरोप लगाया कि आज तक किसी भी अधिकारी ने उनके गांव की सुध नहीं ली।
सरकार समय रहते मारकंडा की करवाये सफाई- कलसाना के पूर्व सरपंच व नंबरदार विष्णु भगवान गुप्ता ने बताया कि गांव में मारकंडा से बाहर पावर हाउस की ओर लगभग 300 एकड़ भूमि में खड़ी फसल को नुकसान पहुंचा है। गांव कठवा में सड़कों पर पानी चल रहा है, जिससे यह गांव दूसरे गांवों से कट गया है। उन्होंने कहा कि सरकार 20 जून से मारकंडा नदी की सफाई करवानी शुरू करती है और 25 जून के आसपास मारकंडा नदी में वर्षा का पानी आ जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रशासन मारकंडा नदी की सफाई फरवरी में शुरू करे व मई तक इस कार्य को पूरा करे।
किसान बोले- 600 एकड़ में दोबारा रोपाई करनी पड़ी
ग्रामीण जसबीर सिंह मामूमाजरा ने बताया कि इस बार वर्षा खूब हो रही है जिस कारण गांव सुलखनी, नगला, झरौली, मामूमाजरा में धान की रोपाई नष्ट हो गई है और अब किसानों ने लगभग 600 एकड़ में दोबारा रोपाई की है। लगभग 50 प्रतिशत फसल बर्बाद होने का अनुमान है। जो खेत नीचे हैं, वे पूर्णतया जलमग्न हैं और जो उंचाई पर हैं, उनमें भी जरूरत से ज्यादा पानी जमा है।