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संसार की आसक्ति को काट देती है गुरु चरणों की अनुरक्ति : साध्वी सरस्वती

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आश्रम, में रविवार को साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस अवसर पर संस्थान की प्रचारक साध्वी सरस्वती भारती ने अपने उद्बोधन में गुरु प्रेम और शिष्यत्व...
जगाधरी में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के आश्रम में आयोजित सत्संग में प्रवचन करती साध्वी सरस्वती भारती। -हप्र
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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आश्रम, में रविवार को साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस अवसर पर संस्थान की प्रचारक साध्वी सरस्वती भारती ने अपने उद्बोधन में गुरु प्रेम और शिष्यत्व के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति जिज्ञासु, अर्थार्थी या ज्ञानी बनकर गुरु की शरण में जाता है, तभी वह शिष्य कहलाता है।

गुरु की शरण में आने के बाद ही वह उनकी असीम शक्ति और अलौकिक प्रेम से परिचित होता है। साध्वी ने कहा कि गुरु प्रेम में लीन शिष्य का हृदय तीर्थ समान पवित्र बन जाता है, क्योंकि गुरु प्रेम से उसके जीवन के विकार और विषय-वासना स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे लोहा लोहे को काटता है, वैसे ही गुरु चरणों की अनुरक्ति संसार की आसक्ति को काट देती है।

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संसार की आसक्ति ही मनुष्य को जन्म-मरण के बंधनों का कारण बनती है। जब शिष्य का मन पूर्ण रूप से गुरु में अनुरक्त होता है, तब वह इस संसार के प्रत्येक कण में परमात्मा की असीम सत्ता का अनुभव करने लगता है। साध्वी सरस्वती ने कहा कि गुरु प्रेम ही प्रेम का वास्तविक और दिव्य स्वरूप है। यह प्रेम सीमित नहीं होता, बल्कि यह अनंत और ब्रह्मांड की सीमाओं से भी परे है।

उन्होंने कहा कि गुरु प्रेम से युक्त व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में निराश या हताश नहीं हो सकता, क्योंकि गुरु प्रेम ही उसकी अखंड संपदा और जीवन का स्थायी आधार बन जाता है। कार्यक्रम के अंत में साध्वी बहनों ने भावपूर्ण भजनों का गायन कर संगत को आध्यात्मिक आनंद से सराबोर कर दिया।

 

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