मृत्यु अंत नहीं, केवल शरीर की समाप्ति है : स्वामी ज्ञानानंद
स्वामी ज्ञानानंद ने कहा कि जो कुछ भी दिया जाता है, वह किसी न किसी रूप में कई गणित करके वापस लौटता है। मृत्यु जीवन का अंत नहीं, बल्कि केवल शरीर की समाप्ति है। मृत्यु के बाद भी जीवन रहता है। मानव जन्म के साथ शरीर तो साथ लेकर आता है, लेकिन जब विदाई का समय आता है तो जीवनभर की संचित संपदा यहीं छोड़कर जाना पड़ता है, शरीर भी साथ नहीं जाता। स्वामी ज्ञानानंद श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर रचना शरीर विभाग एवं दधीचि देहदान समिति कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘देह दान जागृति एवं शपथ ग्रहण समारोह’ में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देहदान एक महान संकल्प है, जो दूसरों को नया जीवन देने का मार्ग खोलता है। उन्होंने इस अवसर पर आयुष विश्वविद्यालय और गीता ज्ञानम संस्थान के बीच गीता और आयुर्वेद विषय पर एमओयू करने का भी सुझाव दिया। इससे पहले स्वामी ज्ञानानंद और आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने देहदान का संकल्प लेने वाले महादानियों को फूल मालाएं पहना उनका अभिवादन किया और शपथ दिलाई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने देहदान का संकल्प लेने वाले सभी समाजसेवियों का आभार जताया।
दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष अशोक रोशा, संरक्षक जगमोहन बंसल, एमके मौद्गिल, शिक्षाविद रमेश दत्त शर्मा, उपाध्यक्ष मनोज सेतिया, रामचंद्र सैनी, जीतेंद्र मास्टर, वीके सिंगला, विनोद जोतवाल, डीपी महावीर, दीपक गिल, कैलाश गोयल, अमित शर्मा, अनु मालियान, बृज लाल धीमान, चंद्रशेखर अत्रे, दीपक गिल, डॉ. सुतेंद्र गौड़, कमलेश धीमान, जयप्रकाश पांवर, कैलाश गोयल, डीपी मिथुन, प्रेम मेहता, राजेंद्र धीमान, लाला नितेश मंगल, डॉ. कृष्ण मलिक, रामपाल, रविंद्र अग्रवाल, विनोद जोतवाल, वीरेंद्र वर्मा, नाथी राम गुप्ता ने देहदान का संकल्प लिया।