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आज़ादी के रंग: 78 साल बाद भी फुटपाथ पर ‘तिरंगा’ और ‘ज़िंदगी’

डबवाली का सिल्वर जुबली चौक देशभक्ति के रंगों में सराबोर खुले आसमान के नीचे सोने वाले विक्रेताओं की जिंदगी, आज़ादी के 78 साल बाद भी, इस सच्चाई को उजागर करती है कि देश में अब भी करोड़ों लोग रोज़ी-रोटी...
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डबवाली में मेहनतकशों की उम्मीदों के तिरंगों से सजा सिल्वर जुबली चौक। -निस
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डबवाली का सिल्वर जुबली चौक देशभक्ति के रंगों में सराबोर

खुले आसमान के नीचे सोने वाले विक्रेताओं की जिंदगी, आज़ादी के 78 साल बाद भी, इस सच्चाई को उजागर करती है कि देश में अब भी करोड़ों लोग रोज़ी-रोटी के लिए जूझ रहे हैं। इनके लिए केवल मुफ्त राशन नहीं, बल्कि स्थायी रोजगार व आत्मसम्मान से जुड़ी आजीविका के अवसर की सख़्त ज़रूरत है, ताकि वे अपने पैरों पर खड़े होकर सम्मानजनक जीवन जी सकें।

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स्वतंत्रता दिवस नज़दीक आते ही डबवाली का सिल्वर जुबली चौक देशभक्ति के रंगों में सराबोर हो गया है। चौक के इर्द-गिर्द फुटपाथ पर कई गरीब महिला व पुरुष दुकानदार राष्ट्रीय ध्वज, बैज, कागज़ी पंखे, रंग-बिरंगी टोपियां और बच्चों के खिलौने सजा कर बैठे हैं। इनकी दुकानें भले ही अस्थायी हैं, लेकिन इनमें सजी चीज़ें तिरंगे के गर्व और उत्साह का प्रतीक हैं। इन रंगों के पीछे एक सच्चाई है कि इनकी ज़िंदगी आज भी फुटपाथ पर गुजर रही है।

इनके लिए यह महज एक व्यापार नहीं, बल्कि रोज़ी-रोटी का सहारा है। ये लोग रोज़मर्रा के संघर्ष में जीते हैं और ऐसे अवसरों पर एक-दो दिन की बिक्री से घर का चूल्हा जलाने की उम्मीद लगाए बैठते हैं।

राजस्थान के टोंक जिले के गुनसी अजीतपुर बसारा गांव से आए राष्ट्रीय ध्वज विक्रेता तूफान सिंह बावरिया ने बताया कि वह और उनका परिवार अलग-अलग शहरों में पर्व-त्योहारों पर ऐसे सामान बेचते हैं, जिससे कुछ दिनों की रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम हो जाता है। यही हमारी ज़िंदगी है। इस बार उनके साथ पत्नी शिमला, सास शांति और नजदीकी रिश्तेदार कमलेश भी हैं, जिन्होंने सिल्वर जुबली चौक के चारों ओर अलग-अलग छोटी-छोटी दुकानें सजा रखी हैं।

बढ़ती महंगाई में कमाई आसान नहीं

महिला झंडा विक्रेता शांति का कहना है कि बढ़ती महंगाई और मौसम की मार ने उनकी कमाई की राह आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि हम साल भर अलग-अलग सामान बेचते हैं, लेकिन 15 अगस्त और 26 जनवरी के आस-पास तिरंगा और देशभक्ति से जुड़ा सामान बेचकर थोड़ा बेहतर कमा लेते हैं। यहां बिकने वाला हर तिरंगा सिर्फ राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक नहीं, बल्कि मेहनत, संघर्ष व उम्मीद की कहानी भी कहता है।

मोटिवेशनल स्पीकर आचार्य रमेश सचदेवा ने कहा कि आज़ादी पर्व की हर्षित लहर में आम लोगों को राष्ट्रीय ध्वज आदि इनसे खरीद उनकी रोज़ी-रोटी के संघर्ष में अपना योगदान देना चाहिए। कटु सच यह है कि दिन में ये लोग तिरंगे और सजावटी सामान बेचते हैं, जबकि रात को फुटपाथ पर चूल्हा जलाकर अपना खाना पकाते हैं।

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