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दीपोत्सव से पहले कंबल बाजार ठंडा

सर्दी का इंतजार... क्रूड ऑयल में मंदी से रॉ मटीरियल सस्ता, पर यार्न मिलों ने नहीं घटाए दाम
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इस बार दिवाली जल्दी आने से कंबल बाजार में उम्मीद के मुताबिक रौनक नहीं दिख रही। हालांकि अन्य प्रदेशों से मांग निकल रही है, लेकिन व्यापारियों में वह उत्साह नहीं है, जिसकी हर साल सर्दियों की शुरुआत में उम्मीद रहती है। कंबल व्यापारी अब सर्दी बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि कारोबार में गर्मी लौट सके। हालांकि केंद्र सरकार ने हाल ही में कंबल उद्योग पर जीएसटी 12 प्रतिशत से घटाकर अब 5 प्रतिशत कर दी है। इससे कारोबारियों को सीधा लाभ मिलेगा और उनकी लगभग 7 प्रतिशत पूंजी अब ब्लॉक नहीं होगी। वहीं क्रूड ऑयल की कीमतों में भी गिरावट के चलते पॉलिएस्टर यार्न के रॉ मटीरियल के दाम तो घटे हैं, लेकिन अभी तक धागा मिलों ने यार्न के भाव नहीं घटाए हैं। व्यापारियों का कहना है कि यदि यार्न सस्ता हुआ तो कंबल निर्माण लागत कम होगी और बाजार में तेजी आएगी।

3डी चादर बनाने की पानीपत में 100 यूनिट

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पानीपत में करीब 100 यूनिट मिंक कंबल और 3डी चादर बनाने के कार्य में लगी हैं। प्रत्येक यूनिट में औसतन 15 टन उत्पादन प्रतिदिन होता है। 31 अक्टूबर से 3 नवंबर तक समालखा (पानीपत) में होने वाले निरंकारी सम्मेलन में देश-विदेश से करीब 10 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। इस दौरान भारी मात्रा में कंबलों की बिक्री होती है, जिसके लिए व्यापारी तैयारियां शुरू कर चुके हैं।

चिंता : लेबर की कमी

कंबल उद्यमियों को इन दिनों मजदूरों की कमी की चिंता सता रही है। बिहार में चुनाव और छठ पूजा के चलते बड़ी संख्या में मजदूर अपने गांव लौट गए हैं। यदि छठ के बाद वे वापस नहीं आते तो उत्पादन प्रभावित होगा और बाजार में कंबलों के दाम बढ़ सकते हैं।

भाव वैरायटी अनुसार

मिंक कंबल - ₹185–190 प्रति किलो

सुपर सॉफ्ट - ₹225–230 प्रति किलो

फ्लैनो - ₹265–400 प्रति किलो

देश में ‘हालैंड फैब्रिक’ निर्माण की ओर कदम

पानीपत सहित देशभर में चीन से हजारों कंटेनर हालैंड फैब्रिक (सोफा और बेडशीट बनाने वाला कपड़ा) आयात होते हैं। अब पानीपत के उद्योगपति इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं। यहां चार यूनिट हालैंड फैब्रिक निर्माण के लग चुके हैं। पानीपत देश में बनने वाले 85 प्रतिशत मिंक कंबलों की आपूर्ति करता है, जबकि सिर्फ 15 प्रतिशत आयात अब चीन से होता है। उद्योगपति चीन और जर्मनी से मशीनरी मंगवा रहे हैं। एक यूनिट लगाने में लगभग 20 करोड़ रुपये की लागत और तीन एकड़ भूमि की आवश्यकता होती है। व्यापारी जोगेंद्र नरुला का कहना है कि आने वाले समय में अधिक यूनिट लगने से हम हालैंड फैब्रिक निर्माण में आत्मनिर्भर हो जाएंगे। फिलहाल चीन से आने वाला फैब्रिक क्वालिटी में बेहतर और सस्ता होने के कारण व्यापारी उसी पर निर्भर हैं।

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