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‍‍Bio-Engineering Measures : भूस्खलन से निपटने के लिए बायो-इंजीनियरिंग उपायों पर जोर दे रही सरकार : सीएम सुक्खू

शिमला, 13 फरवरी(हप्र) : हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं से निपटने के लिए राज्य सरकार बायो-इंजीनियरिंग (‍‍Bio-Engineering Measures )पहल शुरू कर रही है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आज शिमला में कहा कि वेटिवर घास की खेती के...
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शिमला, 13 फरवरी(हप्र) : हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं से निपटने के लिए राज्य सरकार बायो-इंजीनियरिंग (‍‍Bio-Engineering Measures )पहल शुरू कर रही है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आज शिमला में कहा कि वेटिवर घास की खेती के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की गई है, जो अपनी गहरी और घनी जड़ों के कारण मिट्टी को मजबूती से बांधती और भूमि कटाव को रोकती है।

‍‍Bio-Engineering Measures : वेटिवर घास की सफल खेती पर जोर

उन्होंने कहा कि वेटिवर घास का उपयोग विश्व भर में विशेष रूप से भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों, राजमार्ग तटबंधों और नदी के किनारों पर मिट्टी संरक्षण के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। इसकी क्षमता को पहचानते हुए हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने वेटिवर फाउंडेशन-क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी इनिशिएटिव्स (सीआरएसआई) तमिलनाडु के सहयोग से भूस्खलन से निपटने के लिए स्थायी शमन रणनीति विकसित करने के लिए यह परियोजना शुरू की है।

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‍‍Bio-Engineering Measures : सीआरएसआई से वेटिवर नर्सरी उपलब्ध करवाने का आग्रह किया

इस पहल के अन्तर्गत प्राधिकरण ने सीआरएसआई से वेटिवर नर्सरी उपलब्ध करवाने का आग्रह किया है ताकि 2025 के मानसून सीजन से पहले पर्याप्त मात्रा में पौधे उपलब्ध हो सकें। सीआरएसआई ने 1,000 वेटिवर घास के पौधे निःशुल्क उपलब्ध करवाए हैं। इन पौधों को कृषि विभाग के सहयोग से सोलन जिले के बेरटी में स्थापित नर्सरी में लगाया गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि एचपीएसडीएमए वेटिवर घास की सफल खेती और आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पायलट परियोजना की बारीकी से निगरानी कर रहा है। उत्साहजनक रूप से, प्रारंभिक परिणाम पौधों की उच्च जीवित रहने की दर का संकेत देते हैं, जिसमें विकास और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल होने के स्पष्ट संकेत हैं।

ऐसे काम करती है वेटियर घास

वेटिवर घास, जो 3-4 मीटर गहराई तक जड़ें विकसित कर सकती है, एक मजबूत नेटवर्क बनाती है जो मिट्टी को बांधती है जिससे भूस्खलन का खतरा कम होता है। यह एक प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करते हुए पानी के बहाव को धीमा कर देती है और विशेषकर खड़ी ढलानों में भूमि के कटाव को रोकती है। पंक्तियों में लगाए जाने पर वेटिवर घास एक दीवार की तरह काम करती है। इसकी जड़ें अतिरिक्त पानी को सोख लेती हैं और मिट्टी में पानी की अधिकता को कम करती है जिससेे भूस्खलन की आशंकाएं कम हो जाती है।

 

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