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बराड़ा से छिना 'सबसे ऊंचे रावण' का तमगा, इस बार कोटा में लगेगा 220 फीट का पुतला

दशहरे पर ‘दुनिया का सबसे ऊंचा रावण का पुतला’ बनाने के लिए प्रसिद्ध बराड़ा इस बार अपनी पहचान बचा नहीं सका, क्योंकि कस्बे में उपयुक्त दशहरा मैदान उपलब्ध नहीं है। रावण के पुतले के निर्माणकर्ता तेजेंद्र चौहान ने बताया कि...
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बराड़ा में रावण का चित्र बनाते तेजिंदर चौहान।    -निस
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दशहरे पर ‘दुनिया का सबसे ऊंचा रावण का पुतला’ बनाने के लिए प्रसिद्ध बराड़ा इस बार अपनी पहचान बचा नहीं सका, क्योंकि कस्बे में उपयुक्त दशहरा मैदान उपलब्ध नहीं है। रावण के पुतले के निर्माणकर्ता तेजेंद्र चौहान ने बताया कि परंपरागत स्थल न मिलने के कारण 220 फीट ऊंचे पुतले का निर्माण राजस्थान के कोटा में शुरू किया गया है। आयोजनकर्ताओं के अनुसार, यह बदलाव केवल स्पेस की कमी और सुरक्षा मानकों के कारण किया गया है। स्थानीय स्तर पर रामलीला क्लब बराड़ा ने लंबे समय तक इस परंपरा को संभाला और पहले 210 फीट तक के पुतले खड़े किए गए। क्लब के रिकॉर्ड में गिनीज बुक में प्रविष्टि के साथ लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में 5 बार नाम दर्ज हो चुका है। लिम्का बुक में 2011 में पहली बार ये रिकॉर्ड 2009 में बने पुतले के लिए दर्ज हुआ था। तब से लगातार पुतले की ऊंचाई बढ़ती गई। जिसके चलते 2013, 2014, 2015, 2016 में भी बने पुतले को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में एंट्री मिली।

आयोजक टीम का कहना है कि बराड़ा में स्थायी, विस्तृत और सुरक्षित मैदान न होने से निर्माण, स्थापना और दहन की प्रक्रिया बाधित होती रही। मैदान की कमी को लेकर समाजसेवी विकास सिंगला और कई स्थानीय नागरिकों ने प्रशासन से स्थायी साइट चिन्हित करने की मांग दोहराई। उनका कहना है कि दशहरा मैदान के लिए जमीन तय होने पर बराड़ा की पुरानी पहचान फिर से सशक्त हो सकती है। विजय गुप्ता समेत अन्य निवासियों का मत है कि देरी हुई तो कस्बे की सांस्कृतिक धरोहर सिर्फ स्मृतियों तक सिमट जाएगी। पिछले आयोजनों में 4 टन से अधिक वजनी पुतले के लिए बांस, लोहे, फाइबर, कपड़े और अन्य सामग्री का भारी इस्तेमाल होता रहा है। निर्माण में लगभग 6 महीने लगते थे और औसतन 10 लाख रुपये तक की लागत आती थी। आयोजकों ने संकेत दिया है कि यदि प्रशासन उपयुक्त जमीन उपलब्ध कराए तो अगली बार फिर बराड़ा में ही रावण का विशाल पुतला तैयार किया जा सकता है। फिलहाल, मौजूदा वर्ष का निर्माण कोटा में जारी है और बराड़ा अपने प्रतीक आयोजन से अस्थायी तौर पर वंचित दिखाई देता है।

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