बौद्धिक क्षमताओं के विकास के साथ मूल्यों का विकास परम आवश्यक : प्रो. कैलाश चन्द्र
वे सोमवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम हॉल में नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन, हरियाणा स्टेट हायर एजुकेशन काउंसिल तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में शिक्षक शिक्षा में परिवर्तन विकसित भारत 2047 की दिशा में’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दोपहर के सत्र में बोल रहे थे।
समस्कृत प्रमोशन फाउंडेशन के निदेशक प्रो. सीके सलूजा ने कहा कि शिक्षकों को अपने प्रोफेशन के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। इसके साथ ही शिक्षकों में सीखने की प्रवृति होनी चाहिए। विद्यार्थियों का हर प्रश्न शिक्षा के लिए औषधि माना जाता है। उन्होंने कहा कि एनईपी-2020 सम्पूर्ण रूप से भारतीयता से परिपूर्ण है जिसमें भारतीय भाषाओं द्वारा ज्ञान अर्जन पर जोर दिया गया है।
एनसीटीई की सदस्य सचिव अभिलाषा झा मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) का मुख्य उद्देश्य संपूर्ण देश में अध्यापक शिक्षा प्रणाली के योजनागत और समन्वित विकास को प्राप्त करना और इससे संबंधित मामलों हेतु एवं अध्यापक शिक्षा प्रणाली में मानकों और मापदंडों का विनियमन और उचित अनुरक्षण करना है।
सम्मेलन के संयोजक प्रो. डी.के. चतुर्वेदी ने शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक पर चर्चा की और पीपीटी के माध्यम से इसके बारे में विस्तार से बताया। इस अवसर पर एनआरसी के चेयरपर्सन एचसीएस राठौर, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. दिनेश कुमार, डीन ऑफ कॉलेजिज प्रो. ब्रजेश साहनी, प्रो. संजीव शर्मा, डॉ. वंदना, डॉ. चंचल मल्होत्रा, विनय कुमार, सुनील सिंह डॉ. आशू, डॉ. ज्योत्सना, प्रो. अनिता भटनागर, प्रो. अनिता दुआ, प्रो रीटा दलाल, प्रो. महासिंह पूनिया, डॉ. संगीता सैनी, डॉ. संगीता धीर सहित गणमान्य लोग मौजूद थे।
समाज को विकसित करने के लिए सामाजिक मूल्य जरूरीः प्रो. अरोड़ा
एनसीटीई के चेयरमैन प्रो. पंकज अरोड़ा ने सम्मेलन के सांयकालीन सत्र में कहा कि समाज को विकसित करने के लिए सामाजिक मूल्य जरूरी हैं तथा शिक्षा ऐसा माध्यम है जो हमें समाज से जोड़ने एवं विकसित करने का कार्य करती है। एकीकृत शिक्षक शिक्षा प्रोग्राम (आईटीईपी) अब स्कूल तक सीमित नहीं है बल्कि इसको बड़े स्तर पर शिक्षा के स्तरों में शामिल किया गया है।
उन्होंने कहा कि आईटीईपी के अंतर्गत योगा एजुकेशन, फिजीकल एजुकेशन, आर्टस एजुकेशन तथा संस्कृत एजुकेशन द्वारा इन क्षेत्रों में विस्तृत गहन शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत के नए कोर्स दूसरे देशों में भी पाठ्यक्रम एवं रोजगार के रूप में स्वीकार किए गए हैं। पाठ्यक्रम निर्धारण के लिए 7 हजार लोगों के विचार आए हैं जिस पर मंथन कर अच्छे विचारों को शिक्षा आयामों में समावेशित किया जाएगा।