पत्थरों में छिपा फ़साना : नूंह के 600 साल पुराने जैन मंदिर का फिर होगा वैभव
पत्थरों में छिपा फ़साना- अरावली की तलहटी में बसे नूंह जिले के भोंड़ गांव का प्राचीन जैन मंदिर अब नई पहचान की ओर बढ़ रहा है। करीब 600 साल पुराना यह मंदिर स्थापत्य और आस्था का अद्भुत संगम है। केंद्र...
पत्थरों में छिपा फ़साना- अरावली की तलहटी में बसे नूंह जिले के भोंड़ गांव का प्राचीन जैन मंदिर अब नई पहचान की ओर बढ़ रहा है। करीब 600 साल पुराना यह मंदिर स्थापत्य और आस्था का अद्भुत संगम है। केंद्र सरकार ने इसके जीर्णोद्धार के लिए 5.32 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं और 12 महीनों में काम पूरा करने का लक्ष्य है।
जैसे ही कोई इस मंदिर में प्रवेश करता है, तो सामने खड़ा विशाल सभा मंडप, ऊंचे खंभे, नक्काशीदार छतें और प्रदक्षिणा पथ इसकी भव्यता को बयां करते हैं। मंदिर में तीन गर्भगृह हैं जो अलग-अलग जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं। सभा मंडप के ऊपरी हिस्से पर लगे अभिलेख के अनुसार, इसका निर्माण 1451 ई. (संवत 1508) में हुआ था — यानी लोदी वंश के दौर में। स्थापत्य में इस्लामी और जैन शैलियों का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है, जो इसे खास बनाता है।
पत्थरों में छिपा फ़साना- लोदीकालीन मंदिर हैं दुर्लभ
पुरातत्वविद मानते हैं कि लोदीकालीन ऐसे जैन मंदिर देश में दुर्लभ हैं। खंभों व छतों की नक्काशी, सभा मंडप की बनावट उस समय की उत्कृष्ट इंजीनियरिंग और कला की मिसाल है। यह धरोहर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि इतिहास और संस्कृति की अमूल्य धरोहर भी है।
स्थानीय बुजुर्ग हरिओम (72) बताते हैं कि उन्होंने बचपन में यहां मेले और धार्मिक आयोजनों की रौनक देखी है। समय के साथ मंदिर उपेक्षा का शिकार हो गया, दीवारों और छतों में दरारें, झरते पत्थर इसकी पहचान को ढकने लगे। पर अब उम्मीद जगी है। राजेश कुमार कहते हैं कि जीर्णोद्धार से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सहारा मिलेगा। श्रद्धालु और पर्यटक आएंगे तो रोजगार के अवसर भी बनेंगे।
युवाओं का मानना है कि मंदिर के पास सड़क, पार्किंग और ठहरने की सुविधाएं विकसित कर इसे धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाया जा सकता है। मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं रहा, यह सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र था। अब सरकार की योजना है कि जीर्णोद्धार के साथ मंदिर में प्रकाश, पेयजल, स्वच्छता और पार्किंग जैसी सुविधाएं भी विकसित की जाएं।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा ने कहा कि मूल कलात्मकता को बनाए रखते हुए आधुनिक तकनीकों से मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा। सरकार का उद्देश्य है कि यह स्थल केवल एक धार्मिक धरोहर न रहकर धार्मिक पर्यटन का नया केंद्र बने।
इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर आस्था, स्थापत्य और संस्कृति — तीनों का अद्वितीय संगम है। ‘पत्थरों में छिपा है वक़्त का सारा फ़साना, जीर्णोद्धार से अब फिर जिंदा होगा वो तराना...’ — और शायद यही इस प्रयास की सबसे सुंदर कहानी है।