‘व्यक्ति बूढ़ा होता है, उसकी तृष्णा कभी जीर्ण नहीं होती’
सफीदों, 29 मई (निस)
एसएस जैन स्थानक परिसर में बृहस्पतिवार को जैन संत उपेंद्र मुनि ने कहा कि जीवात्मा विविध योनियों में भ्रमण करती हुई मनुष्य गति में आती है। मानव जीवन की नासमझ अवस्था से लेकर, समझदार होने, ओहदेदार होने और फिर प्राण छोड़ने तक उसके मन में नित्य नयी-नयी इच्छाएं व कामनाएं उत्पन्न होती रहती हैं। इन इच्छाओं और तृष्णाओं को पूरा करने के प्रयास में इंसान बूढ़ा हो जाता है लेकिन तृष्णा है कि जाती ही नहीं। जैनमुनि ने कहा कि कभी महात्मा भर्तृहरि ने कहा था कि मनुष्य भोगों को नहीं भोगता, बल्कि मनुष्य ही भोगों के द्वारा भोग लिया जाता है। इंसान जीर्ण-शीर्ण हो जाता है तो भी उसकी तृष्णाएं कभी भी जीर्ण व बूढ़ी नहीं होती हैं। उन्होने कहा कि जब महाराजा भर्तृहरि अपनी महारानी पिंगला के दुश्चरित्र से दु:खी होकर एक चांदनी रात में राजमहलों का परित्याग करके वन की ओर प्रस्थान कर रहे थे। किसी ने पान खाकर थूक रखा था जो माणिक की तरह चमक रहा था। राजमहलों का परित्याग करके भी माणिक पड़ा है, ऐसा सोचकर उसे उठाने की कोशिश की तो हाथ पान के पीक में धस गया। तब भर्तृहरि खुद को धिक्कारने लगे।
उपेंद्र मुनि ने कहा कि असली शहनशाह तो वही होते हैं जिनको कुछ भी नहीं चाहिए, जिसे कोई चिंता नहीं, जो हमेशा मस्त रहते हैं। उन्होने कहा कि व्यक्ति के पास उतना ही धन होना चाहिए जिससे उसका काम ना रूके लेकिन आज हालत यह है की किसी को चाहे कितना ही मिल जाए फिर भी संतुष्टि नहीं होती।