शिमला, 26 नवंबर (निस)
राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा है कि भारत के संविधान में सामाजिक और भारतीय संस्कृति की अवधारणा निहित है। संविधान की प्रस्तावना में इसकी आत्मा वास करती है। यह प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वे प्रस्तावना के आदर्शों को आत्मसात करने के लिए हरसम्भव प्रयास करें। राज्यपाल आज भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में संविधान की भावना विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। संगोष्ठी का आयोजन भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया है। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान की आत्मा इसकी प्रस्तावना में निहित है, जो संविधान की बुनियादी विशेषता के आधार पर राष्ट्र का मार्गदर्शन करती है। उन्होंने कहा कि इससे भी बढ़कर प्रस्तावना का मूल मानवता है, जिसमें केवल मानव की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जीव-जगत के कल्याण की भावना व्याप्त है।
आईआईएएस के अध्यक्ष कपिल कपूर ने कहा कि भारतीय समाज और परंपरा स्वशासन के सिद्धांत पर आधारित रही है और यही कारण है कि कई राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद हमारी संस्कृति और सभ्यता का अस्तित्व आज भी कायम है। उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन संस्कृति में ‘पंच’ को ‘परमेश्वर’ कहा जाता था।
उन्होंने जिम्मेदार सरकार और स्वशासन के मध्य अंतर को विस्तारपूर्वक बताया। आईआईएएस के निदेशक प्रोफेसर चमन लाल गुप्ता ने कहा कि आज़ादी का अमृत महोत्सव समारोह हम सभी के लिए गर्व और प्रसन्नता की बात है लेकिन यह आकलन करने का भी सही समय है।