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शराब बेचना महंगा पड़ने लगा सामान्य उद्योग निगम को

आबकारी नीति के प्रावधानों से जीआईसी को करोड़ों का घाटा होने का अंदेशा
प्रतिकात्मक चित्र
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हिमाचल सरकार की आबकारी नीति में बदलाव का फैसला सामान्य उद्योग निगम पर भारी पड़ने लगा है। राज्य कारपोरेट सेक्टर सेवानिवृत कर्मचारी समन्वय समिति ने आबकारी नीति के प्रावधानों से जीआईसी को करोड़ों का घाटा होने का अंदेशा जताया है। समिति के प्रधान देवी लाल ठाकुर, महासचिव प्रकाश पराशर, उप महासचिव राजेंद्र शर्मा, वित्त सचिव दौलत राम ठाकुर व मुख्य संगठन मंत्री सुकरन पुरी ने प्रदेश सरकार खासतौर पर मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू से आबकारी नीति में किए गए उन बदलावों जिनके तहत जीआईसी जैसे सरकारी उपक्रमों को शराब बेचने का जिम्मा सौंपने की बात कही गई है, को वापस लेने की मांग की है।

समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि मनाली में पर्यटन निगम की जमीन पर एक शेड बना कर जीआईसी को शराब का ठेका खोलने को दिया गया। इस शेड का किराया दो लाख रुपए से अधिक है। मनाली में ही स्थानीय निकाय की जमीन में भी जीआईसी को शराब का ठेका खोलने के लिए किराए पर शेड दिया गया है। इसका किराया भी लाखों रुपए सालाना है। उनका कहना है कि पड़ताल करने पर पता चला कि स्थानीय निकाय में भाजपा कांग्रेस की राजनीति के चलते किराया बहुत अधिक है। अधिक किराए को लेकर तर्क दिया जा रहा है कि सरकार का पैसा उसी के खजाने में जा रहा है। मगर यह पर्यटन निगम के शेड के मामले में नहीं। समिति के नेताओं ने अंदेशा जताया कि आबकारी नीति में बदलाव को वापस न लेने की स्थिति में जीआईसी को वित्त वर्ष के अंत में करोड़ों का नुकसान होगा। जीआईसी के पास रिटायर कर्मचारियों की ग्रेच्युटी के भुगतान के लिए रकम नहीं, लिहाजा उसे शराब का घाटे का काम सौंपने से इसकी हालत दयनीय होगी। लिहाजा सरकार को इस मुद्दे पर फिर से विचार करना चाहिए।

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