शिमला, 4 दिसंबर (निस)
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने केंद्र सरकार के बैंकिंग लॉज अमेंडमेंट बिल-2021 का विरोध करते हुए कहा कि इनके पारित होने से देश की सरकारी बैंकिंग व्यवस्था पर कुप्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार का प्रस्ताव देश में बैंकों के निजीकरण को बढ़वा देते हुए पूंजीपतियों को लाभ देने का बड़ा षड्यंत्र है।
वे यहां पत्रकारों को सम्बोधित कर रहे थे। राठौर ने कहा कि कांग्रेस इसके खिलाफ जनमत खड़ा करेगी। कांग्रेस बैकों की यूनाइटेड फॉर्म ऑफ बैंक यूनियन के साथ खड़ी है और उन्हें इसके विरोध में अपना पूरा समर्थन देगी। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में बैंकों का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिला और उन्होंने इस बिल को लेकर अपनी चिंताओं से उन्हें अवगत कराया।
राठौर ने कहा कि देश के विकास में इन राष्ट्रीयकृत बैकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने 19 जुलाई 1969 को 14 कमर्शियल बैकों का राष्ट्रीयकरण कर इन्हें सरकार के अधीन किया था। तबसे आज तक ये बैंक देश की अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते आए हैं।
उन्होंने कहा कि जब विश्व में मंदी का दौर आया तो भी देश में इन बैंकों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हुए देश की अर्थव्यवस्था को डांवाडोल नहीं होने दिया। राठौर ने कहा जब देश आजाद हुआ तब देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था के चलते सभी की भागीदारी सुनिश्चित की गई थी। उन्होंने कहा कि की कांग्रेस ने अपने शासनकाल के 70 वर्षों में देश में जो उपक्रम बनाये थे, उन्हें आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक-एक करके बेच रहे हैं।
राठौर ने कहा कि भाजपा सरकार अपनी सोची समझी रणनीति के तहत लाभकारी उपक्रमों को कुछ पूंजीपतियों को बेच रही है। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार बड़े पूंजीपतियों के ऋण तो माफ कर रही है पर किसानों और छोटे कारोबारियों को कोई भी राहत नहीं देती। उन्होंने कहा कि बैंकों में जमा राशि पर ब्याज दरें कम करना भी लोगों के साथ अन्याय है।
श्वेत पत्र जारी करे सरकार
कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से प्रदेश में निजी व सरकारी बैंकों में सरकारी जमा राशि पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार बताए कि प्रदेश सरकार ने निजी बैकों में अपना कितना धन जमा कर रखा है और सरकारी बैंकों में कितना जमा किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार प्रदेश में निजी बैंकों को बढ़ावा देते हुए सरकारी बैंकों की घोर उपेक्षा कर रही है। अधिकतर सरकारी लेनदेन निजी बैंकों से किया जा रहा है।