जमीन के बाहर उगेगा आलू, न खेत जुताई की चिंता, न ज्यादा सिंचाई की
हितेश शर्मा/निस
नाहन, 7 फरवरी
सब्जियों के राजा आलू को अब जमीन के नीचे उगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यानी अब इसके लिए मिट्टी की भी आवश्यकता नहीं होगी। बड़ी बात ये है कि इस फसल के लिए न तो खेत को हल से जोतने की जरूरत होगी और न ही ज्यादा सिंचाई की। सिर्फ 3 माह में ये फसल तैयार हो जाएगी। दरअसल, हिमाचल में पहली बार आलू की बिजाई में नई तकनीक का इस्तेमाल हुआ है। कुफरी नीलकंठ और कुफरी संगम किस्म के आलू पर किया गया कृषि वैज्ञानिकों का ये शोध सफल रहा है। इसे जिला सिरमौर के कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुआं में अंजाम दिया गया। जहां आधा हेक्टेयर भूमि पर इस किस्म के आलू का उत्पादन हुआ। बड़ी बात ये है कि ये पूरी तरह से प्राकृतिक तौर से उगाया गया है।
वैज्ञानिकों ने इस तकनीक में आलू उत्पादन में पराली का ही इस्तेमाल किया है। बता दें कि पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। इससे न केवल वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि ग्रीन हाउस गैसों का भी उत्सर्जन हो रहा है। पराली इस समय पर्यावरण और मानव जीवन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, लेकिन यहां कृषि वैज्ञानिकों ने इसका इस्तेमाल आलू उत्पादन में किया और नतीजा ये निकला कि पराली को वैज्ञानिकों ने खेत में ही डिकंपोज कर दिया। इससे वैज्ञानिकों ने कार्बन न्यूट्रल फार्मिंग अपनाने का भी बड़ा संदेश दिया।
आलू मिट्टी को जमीन पर रख पराली से ढका कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुआं में वैज्ञानिकों ने अपने फसल प्रदर्शन फार्म में आलू की बिजाई के लिए न तो खेत की जुताई की और न ही किसी तरह से मिट्टी को ढीला किया। वैज्ञानिकों ने धान की कटाई के तुरंत बाद नमीयुक्त खेत में आलू को मिट्टी (जमीन) के ऊपर रखा। आलू रखने के बाद उसे पौना फीट तक पराली से ढका। इसके बाद घनजीवामृत का इस्तेमाल किया। जीवामृत का ऊपर से स्प्रे किया। इस तकनीक में किसी भी प्रकार की रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसकी मल्चिंग की गई। इससे खेती में खरपतवार की समस्या भी खत्म हो गई।
हर किस्म का आलू होगा तैयार, लागत घटेगी
- डाॅ. पंकज मित्तल, प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुआं
साइंटिफिक तरीके से हो रही रिसर्च
- डाॅ. अजय दीप बिंद्रा, सह निदेशक, प्रसार, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर
ग्रेडिंग करना भी आसान
इस तकनीक से आलू की ग्रेडिंग करना भी आसान है। चूंकि, आलू की शत प्रतिशत फसल जमीन के बाहर ही होती है। लिहाजा फसल को इकट्ठा करते वक्त इसकी ग्रेडिंग करना काफी आसान है। इस तकनीक में कोई भी आलू जमीन के नीचे नहीं जाएगा। इससे आलू के कटने-फटने और जमीन के नीचे रहने का भी झंझट नहीं है। जैसी समस्या इस फसल की आम खेती में किसानों को पेश आती है। आलू निकालने के लिए खोदाई की भी जरूरत नहीं है।