सिविल एरिया का स्थानीय निकायों में विलय रुका
यशपाल कपूर/निस
सोलन,15 जुलाई
रक्षा मंत्रालय के अधीन प्रदेश की छह छावनी क्षेत्रों के सिविल एरिया को छावनी से अलग करने की मुहिम को एक बार फिर से निराशा हाथ लगी है। दिल्ली में बीते दिनों हुई रक्षा मंत्रालय की बैठक में जमीन के मालिकाना हक को लेकर बात नहीं बन पाई। ऐसे में सिविल एरिया का स्थानीय निकायों में विलय रुक गया है। रक्षा मंत्रालय ने देश की अन्य 10 छावनियों के सिविल एरिया को अलग करने को लेकर स्पष्ट किया कि छावनी से अलग होने वाले सिविल एरिया में जमीन का हक रक्षा मंत्रालय का ही रहेगा। ऐसे में अब हिमाचल की 6 छावनियों में रह रहे लोगों को राज्य सरकार से ही आस बची है। प्रदेश छावनी एसोसिएशन के महासचिव मनमोहन शर्मा का कहना है कि यदि रक्षा मंत्रालय सिविल एरिया की जमीन राज्य सरकार के नाम कर दे तो भी उन्हें आपत्ति नहीं है। पर रक्षा मंत्रालय के पास जमीन का मालिकाना हक रहने से उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। बैठक में 10 छावनियों के सिविल एरिया को अलग करने के लिए की गई गजट नोटिफिकेशन को लेकर लोगों की आपत्तियों व सुझावों सहित संबंधित राज्यों की सरकारों के पक्ष पर प्रमुखता से विचार-विमर्श किया गया।
मनमोहन शर्मा ने कहा कि प्रदेश की छह छावनियों के सिविल एरिया को अलग करने के लिए पिछले कई वर्षों से लगातार संघर्ष किया जा रहा है। इसके लिए बकायदा हिमाचल प्रदेश छावनी एसोसिएशन का गठन भी किया गया और एसोसिएशन के प्रयासों व छावनी वासियों के सहयोग से मामला रक्षा मंत्रालय तक पहुंचा। इसके पश्चात रक्षा मंत्रालय व प्रदेश सरकार के बीच प्रक्रिया शुरू भी हो गई और सुबाथू, कसौली, डगशाई, जतोग, बकलोह व डलहौजी के सिविल क्षेत्र को बाहर करने के प्रस्ताव को प्रदेश सरकार को भेजा गया था। उसके बाद फरवरी, 2024 में इसको लेकर संयुक्त सर्वे भी किया गया था।
ये लिया था पहले निर्णय
रक्षा मंत्रालय ने 36 छावनियों को सिविल एरिया में शामिल करने का निर्णय लिया है। पर नियम और शर्तों में बदलाव किए जाने से विलय का प्रस्ताव अधर में है। रक्षा मंत्रालय की तरफ से नियम और शर्तों में बदलाव कर विलय की स्थिति में छावनीवासियों को भवन का मालिकाना हक़ तो मिलेगा पर जमीन का अधिकार नहीं रहेगा। इससे जिला सोलन के तहत आने वाली कसौली सुबाथू और डगशाई के छावनीवासी निराश हैं। हिमाचल प्रदेश में कुल सात छावनी हैं जिसमें डलहौजी, सबाथू, डगशाई, कसौली, बकलोह, जतोग और खास योल। खास योल को छोड़कर, अन्य छावनी के नागरिक क्षेत्रों को अभी तक विमुक्त नहीं किया गया है।
जमीन का मालिकाना हक चाहते हैं लोग
छावनी वासी इस उम्मीद में है कि अगर राज्य सरकार के अंडर आते तो कभी न कभी इनको जमीन का मालिकाना हक मिलना चाहिए। पहले हुई बैठकों में यह तय हुआ था कि राज्य सरकार में मर्ज होने के बाद सरकार अपने हिसाब से तय करेगी कि जमीन बेचनी है या नहीं। केंद्र ने उसमें शर्त रखी थी कि राज्य सरकार उन लोगों को जमीन का मालिकाना हक दे सकती है, जो उस जमीन पर स्थापित है। बशर्ते जमीन से होने वाली कमाई का 30-35 फीसदी केंद्र सरकार को देना होगा।