हिमाचल पर आपदाओं का कहर, पांच साल में 46 हजार करोड़ का नुकसान
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने जारी की ‘हिमाचल प्रदेश मानव विकास रिपोर्ट’
हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ अब एक भयावह सच्चाई से भी जूझ रहा है। लगातार बढ़ती प्राकृतिक आपदाएं राज्य की विकास रफ्तार को थाम रही हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ‘हिमाचल प्रदेश मानव विकास रिपोर्ट’ के ताजा आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच वर्षों में राज्य को 46 हजार करोड़ रुपये का नुकसान प्राकृतिक आपदाओं से हुआ है। यह हानि राज्य की जीडीपी का करीब चार फ़ीसदी है।
रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल के पर्यावरणीय संतुलन को गहराई से प्रभावित किया है। तापमान में लगभग एक प्रतिशत वृद्धि के कारण भारी वर्षा, भूस्खलन, बादल फटना और ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना आम हो गया है। इन घटनाओं से राज्य की सड़कों, पुलों, भवनों और जलस्रोतों को व्यापक क्षति पहुंची है।
यूएनडीपी की यह रिपोर्ट सोमवार को शिमला में जारी की गई, जहां मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसका लोकार्पण किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दीर्घकालिक समेकित योजना पर कार्य कर रही है। इस रिपोर्ट को राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा जलवायु परिवर्तन विभाग की मदद से तैयार किया गया है।
हिमाचल के 28 फ़ीसदी भूभाग पर घने जंगल फैले हैं, जिनमें देश के कुल कार्बन उत्सर्जन का करीब 2.5 फ़ीसदी अवशोषित करने की क्षमता है। इन जंगलों और नदियों से करीब 20 करोड़ लोगों का जीवन जुड़ा हुआ है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने घोषणा की कि वर्ष 2030 तक वन क्षेत्र को 28 से बढ़ाकर 30 फ़ीसदी किया जाएगा। यह राज्य में पहली बार है जब सरकार ने इस तरह का ठोस लक्ष्य निर्धारित किया है। उन्होंने कहा कि सरकार ग्रीन कवर और जल संसाधनों की रक्षा को प्राथमिकता बना रही है, ताकि हिमाचल का प्राकृतिक संतुलन और मानव विकास दोनों एक साथ सुरक्षित रह सकें।
हर साल 9 हजार करोड़ का फटका
रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल को हर वर्ष औसतन 9 हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान प्राकृतिक आपदाओं से हो रहा है। इसके बावजूद राज्य के पास डेटा आधारित नीति निर्माण, संसाधनों के कुशल उपयोग और सतत विकास मॉडल के माध्यम से अपने भविष्य को सुरक्षित रखने की क्षमता मौजूद है।
विकास के पैमाने पर सोलन अव्वल
मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में हिमाचल का औसत स्तर 0.783 दर्ज किया गया है, जो राष्ट्रीय औसत 0.63 से अधिक है। स्वास्थ्य सूचकांक 0.72, शिक्षा सूचकांक 0.897 और आय सूचकांक 0.743 रहा। जिलों में सोलन पहले, लाहौल-स्पीति दूसरे और किन्नौर तीसरे स्थान पर हैं। इनके बाद क्रमशः शिमला, कुल्लू, मंडी, सिरमौर, हमीरपुर, बिलासपुर, चंबा, ऊना और कांगड़ा का स्थान है। जलवायु जोखिम प्रबंधन में किन्नौर पहले और लाहौल-स्पीति दूसरे स्थान पर हैं। इनके बाद चंबा, कांगड़ा, सिरमौर, मंडी, कुल्लू, शिमला, हमीरपुर, ऊना, सोलन और बिलासपुर आते हैं।

