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Himachal News: सोलन के कोटी में मिला 20 मिलियन वर्ष पुराना जीवाश्म

Himachal News: कसौली संरचना में फूलदार पौधों के विकास को समझने में मिलेगी नई जानकारी
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यशपाल कपूर/निस, सोलन, 17 फरवरी

Himachal News: हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के कोटी रेलवे स्टेशन के पास 20 मिलियन वर्ष पुराना जीवाश्म तना मिला है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह जीवाश्म प्रारंभिक मियोसीन युग के पौधों के विकास और पारिस्थितिकी तंत्र को समझने में मदद करेगा।

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भूविज्ञान और जीवाश्म विज्ञान से जुड़ी एक विशेषज्ञ टीम ने कोटी रेलवे स्टेशन के पास इस जीवाश्म तने की खोज की। यह खोज एंजियोस्पर्म (फूलदार पौधों) के शुरुआती विकास और विविधता पर नई रोशनी डालती है। यह कसौली संरचना में मिलने वाला पहला ऐसा जीवाश्म तना है, जो क्षेत्र में प्राचीन पौधों के फैलाव और अनुकूलन को दर्शाता है।

कसौली फॉर्मेशन और जीवाश्म विज्ञान का इतिहास

कसौली क्षेत्र को लंबे समय से पौधों के जीवाश्मों के समृद्ध संग्रह के लिए जाना जाता है। वर्ष 1864 में वैज्ञानिक मेडलिकॉट ने पहली बार यहां जीवाश्म की खोज की थी। तब से यह क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप के पुरातात्त्विक और जैविक विकास से जुड़ी बहसों का केंद्र बना हुआ है।

डॉ. रितेश आर्य का योगदान

कसौली के वैज्ञानिक डॉ. रितेश आर्य, जो देश के जाने-माने जीवाश्म विशेषज्ञ हैं, वर्ष 1987 से इस क्षेत्र में शोध कर रहे हैं। वे पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से पीएचडी कर चुके हैं और कसौली, जगजीत नगर, बरोग, कुमारहट्टी से कई महत्वपूर्ण जीवाश्म एकत्र कर चुके हैं।

नवीनतम जीवाश्म तना अच्छी तरह से संरक्षित संरचनाओं और कार्बनिक अवशेषों को दर्शाता है, जो आधुनिक एंजियोस्पर्म पौधों से मिलते-जुलते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह क्षेत्र कभी टेथिस महासागर से घिरे पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा था, जिसने भारत को गोंडवाना और तिब्बत को लॉरेशिया से अलग किया था।

वैज्ञानिकों की टीम इस खोज के सूक्ष्म विश्लेषण के लिए बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज के विशेषज्ञों के साथ मिलकर शोध करेगी। इस अध्ययन से 20 मिलियन वर्ष पहले के पर्यावरणीय और जैविक परिवर्तनों को समझने में मदद मिलेगी।

यह जीवाश्म हमारे ज्ञान में महत्वपूर्ण अंतराल को पाटने में मदद करेगाः डॉ. रितेश आर्य

डॉ. रितेश आर्य ने कहा, "यह जीवाश्म तना हमारे ज्ञान में महत्वपूर्ण अंतराल को पाटने में मदद करेगा। इससे यह भी स्पष्ट होगा कि प्रमुख एंजियोस्पर्म वंश केवल गोंडवाना तक सीमित नहीं थे, बल्कि हिमालयी क्षेत्र में भी उनका विकास हुआ था।"

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