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हिमाचल हाई कोर्ट ने वन विभाग पर लगाया 2 लाख का जुर्माना

शिमला, 31 जुलाई (हप्र) हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर करने पर वन विभाग पर 2 लाख रुपये की कॉस्ट लगाई है। न्यायाधीश विरेंदर सिंह ने याचिका से जुड़े तथ्यों व...
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शिमला, 31 जुलाई (हप्र)

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर करने पर वन विभाग पर 2 लाख रुपये की कॉस्ट लगाई है। न्यायाधीश विरेंदर सिंह ने याचिका से जुड़े तथ्यों व रिकॉर्ड का अवलोकन करने के पश्चात पाया कि वन विभाग के अधिकारियों का रवैया प्रार्थी के प्रति पूरी तरह से भेदभाव पूर्ण रहा है। इसी कारण कोर्ट को इस तरह का आदेश पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी के पिता की 20 जुलाई 2007 को मृत्यु हो गई थी जो वन विभाग में वन कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत थे। इसके बाद प्रार्थी ने कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते वन रक्षक पद के लिए पूरी तरह से पात्र होने के कारण प्रचलित नीति के अनुसार वन रक्षक के रूप में करुणामूलक आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था। उसके आवेदन पर कार्रवाई की गई और उसे 3 सितम्बर 2008 को वन विभाग की ओर से साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। साक्षात्कार 9 सितम्बर 2008 को आयोजित किया गया था। प्रार्थी साक्षात्कार में उपस्थित हुआ और उसने ‘शारीरिक माप’, शारीरिक दक्षता परीक्षण’ और ‘व्यक्तिगत साक्षात्कार’ उत्तीर्ण किया। इसके बाद उसका पूरा मामला वन संरक्षक बिलासपुर द्वारा प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भेजा गया था। फिर भी उसे प्रतिवादियों द्वारा नियुक्त नहीं किया गया।

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इसके बाद प्रार्थी ने सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी। जानकारी पत्र दिनांक 18 अक्टूबर 2014 के माध्यम से प्रदान की गई। जिसमें यह दर्शाया गया था कि प्रतिवादी विभाग ने 45 उम्मीदवारों को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की पेशकश की थी, जिनमें से 10 वन रक्षकों को नियुक्त किया गया था। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्रदान की गई एक अन्य जानकारी के अनुसार, वर्ष 2009 में प्रतिवादियों ने करुणामूलक आधार पर वन रक्षक के पद पर पांच व्यक्तियों को नियुक्त किया था। कोर्ट ने वन विभाग के इस कृत्य को भेदभाव पूर्ण पाया और यह अहम निर्णय सुनाया। कोर्ट ने दिनांक 22 सितम्बर 2015 के वन विभाग द्वारा पारित आदेश को निरस्त करते हुए प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे दो महीने की अवधि के भीतर प्रार्थी को करुणामूलक आधार पर वन रक्षक के पद पर नियुक्त करें। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वन विभाग प्रार्थी का मामला जानबूझकर, अवैध और दुर्भावनापूर्ण तरीके से लटकाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से 2 लाख रुपये की कॉस्ट की राशि वसूलने के लिए स्वतंत्र है।

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