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हिमाचल एक दशक में 1600 फीसदी बढ़े कैंसर रोगी!

2013 के 2149 के मुकाबले 32 हजार तक पहुंची संख्या
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ज्ञान ठाकुर/हप्र

शिमला, 8 सितंबर

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करीब 70 लाख की आबादी वाले हिमाचल में कैंसर रोगियों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। विडंबना यह है कि पैट स्कैन को छोड़ आईजीएमसी व टांडा में कैंसर के उपचार की बेहतर सुविधाएं होने के बावजूद रोगियों को वक्त पर इलाज के लिए अस्पताल न पहुंचने की वजह से पीड़ित काल का ग्रास बन रहे हैं। हिमाचल में कैंसर रोग किस कदर पांव पसार रहा है इसका अंदाजा सरकार के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। आंकड़ों के मुताबिक 2013 से 2024 तक प्रदेश में कैंसर रोगियों की संख्या में 1600 फीसदी का इजाफा हुआ है। कैंसर रोगियों की बढ़ती तादाद को देखते हुए टांडा व आईजीएमसी के कैंसर उपचार केंद्रों में पैट स्कैन की सुविधा मुहैया करवाने की दरकार है। साथ ही हमीरपुर में राष्ट्रीय स्तर का कैंसर उपचार केंद्र खोलने की योजना पर भी सरकार काम कर रही है। सनद रहे कि बतौर स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने मोदी-एक सरकार में हिमाचल को टरशरी कैंसर केयर सेंटर खोलने के लिए शिमला व मंडी को धन मुहैया करवाया था, इन केंद्रों का काम अब पूरा होने की स्थिति में बताया जा रहा है।

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2013 में प्रदेश में कैंसर रोगियों की संख्या 2149 थी। प्रदेश विधान सभा में बीते दिनों प्रश्नकाल के दौरान इंदौरा के कांग्रेस विधायक मलेंद्र राजन के सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने लिखित जानकारी दी कि राज्य में कैंसर के मरीजों की संख्या 32 हजार से अधिक है। स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि टांडा मेडिकल कालेज में 19 हजार135 कैंसर रोगियों का उपचार चल रहा है। आईजीएमसी में 11 हजार 343 कैंसर रोगियों का उपचार हो रहा है। मंडी के नेरचौक में श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज में कैंसर के 424 मरीज हैं। नाहन के मेडिकल कॉलेज में कैंसर के 1 हजार 471 मरीज इलाजरत हैं।

स्वास्थ्य मंत्री धनीराम शांडिल ने लिखित जवाब में बताया कि मौजूदा समय में चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान हिमाचल प्रदेश के तहत जिला शिमला , कांगड़ा , सिरमौर , मंडी और हमीरपुर सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल चलाए जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक प्रदेश में फेफड़ों तथा स्तन कैंसर के रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा होता है। कैंसर की चपेट में आए रोगियों को इसका पता तीसरी अथवा चौथी स्टेज में लगने की वजह से कई बार चिकित्सकों के बूते से बाहर उपचार हो जाता है। लिहाजा इस जानलेवा रोग बारे लोगों को जागरूक करने की दरकार है।

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