मुख्य सचिव और जल शक्ति विभाग को हाई कोर्ट का नोटिस
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने जल शक्ति विभाग द्वारा वन भूमि पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के विरुद्ध दायर जनहित याचिका में मुख्य सचिव सहित जल शक्ति विभाग को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि वन विभाग ने जल शक्ति विभाग को संबंधित भूमि पर वाटर टैंक स्थापित करने की अनुमति दी थी परंतु जल शक्ति विभाग ने वहां सैप्टिक टैंक लगाना शुरू कर दिया है। कोर्ट को बताया गया कि पालमपुर की संबंधित ग्राम पंचायत लांगू-गडियारा ने भी उक्त भूमि पर वाटर टैंक स्थापित करने के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया है न कि सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए। प्रार्थी ने पालमपुर वन प्रभाग के सहायक वन संरक्षक द्वारा प्रस्तुत 19.12.2024 की जांच रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि जल शक्ति विभाग द्वारा जल टैंकों के निर्माण हेतु आरंभ में दी गई अनुमति की आड़ में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का अवैध निर्माण किया गया था, जो वन अधिकार अधिनियम, 2006 की धारा 3(2) के अंतर्गत भूमि परिवर्तन हेतु दी गई है। इतना ही नहीं वन विभाग ने उक्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के अवैध निर्माण कार्य को रोकने का निर्देश दिया गया था।
कोर्ट को तस्वीरों का हवाला देते हुए बताया गया कि यह निर्माण कार्य न्यूगल नदी के बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में किया जा रहा है, जो कि ब्यास नदी की सहायक नदी है और नदी के निकट है और यदि इस प्रकार की कोई गतिविधि की अनुमति दी जाती है, तो यह मिट्टी में रिसकर पानी को प्रदूषित कर सकती है। यह भी बताया गया कि वन विभाग ने 18.01.2025 के पत्र के अनुसार, 06.01.2024 को पानी की टंकियों के निर्माण हेतु दी गई अनुमति भी वापस ले ली गई है और प्रतिवादी जल शक्ति विभाग चाहता है कि उक्त भूमि के इस्तेमाल का उद्देश्य परिवर्तन किया जाए।
कोऑपरेटिव बैंक की शिकायत खारिज
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने चेक बाउंस मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए स्पष्ट किया है कि चेक के साथ की गई छेड़छाड़ उसे शून्य कर देती है, इसलिए चेक मालिक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं बनता। न्यायाधीश राकेश कैंथला ने राजिंदर शर्मा की याचिका को स्वीकारते हुए बघाट अर्बन कोऑपरेटिव बैंक की शिकायत को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चेक से की गई छेड़छाड़ अथवा बदलाव उसके कानूनी स्वरूप को बदल देता है। कोर्ट ने व्यवस्था दी कि यदि यह दलील दी जाती है कि चेक में परिवर्तन चेक मालिक ने ही किया है तो यह साबित करने का भार शिकायतकर्ता पर आ जाता है। और इस कारण यदि चेक ही शून्य हो जाए तो भले ही देनदारी साबित हो, चेक बाउंस का आपराधिक मामला नहीं बनता। कोर्ट ने दोनों निचली अदालतों के फैसलों को निरस्त करते हुए आरोपी को बरी कर दिया। मामले के अनुसार शिकायतकर्ता, बघाट अर्बन कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड ने आरोपी राजिंदर शर्मा के खिलाफ चेक बाउंस की शिकायत दर्ज कराई थी।