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पाठ्यक्रम में बार-बार बदलाव विद्यार्थियों के हित में नहीं

शिक्षण और सीखने के लिए बीते पांच साल विनाशकारी : पुष्पेश पंत, बोले
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शिमला में मंगलवार को पदमश्री डॉ. पुष्पेश पंत ‘अभिनव शिक्षाशास्त्र और प्रभावी शिक्षण अधिगमन’ विषय पर स्कूल प्रिंसिपलों के लिए आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए। -ललित कुमार
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ज्ञान ठाकुर/हप्र

शिमला, 3 अक्तूबर

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जाने-माने शिक्षाविद, इतिहासकार और पदमश्री अवार्डी डॉ. पुष्पेश पंत ने आज यहां ‘अभिनव शिक्षाशास्त्र और प्रभावी शिक्षण अधिगमन’ विषय पर स्कूल प्रिंसिपलों के लिए आयोजित एक सेमिनार में पिछले पांच वर्षों को शिक्षण और सीखने की प्रक्रियाओं के लिए विनाशकारी बताया। यह कार्यक्रम द ट्रिब्यून द्वारा चितकारा यूनिवर्सिटी के सहयोग से आयोजित किया गया। सेमिनार में डॉ. पंत मुख्य वक्ता थे। सेमिनार में शिमला शहर और आसपास के प्रतिष्ठित सरकारी और निजी स्कूलों के प्रिंसिपलों ने भाग लिया।

डॉ. पंत ने कोरोना महामारी के कारण पढ़ाने और सीखने की प्रक्रिया में आये व्यवधान पर कहा कि बीते पांच साल, खासकर पढ़ाई के मामले में विनाशकारी साबित हुए हैं। उन्होंने इसके कई कारण बताए। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के कारण आये व्यवधान के कारण बच्चे स्कूल, कॉलेज और अन्य शिक्षण संस्थानों में नहीं जा सके और स्मार्ट फोन तथा इंटरनेट के आदी हो गए। इसका बच्चों के पारस्परिक कम्युनिकेशन स्किल पर गंभीर प्रभाव पड़ा। डॉ. पंत ने कहा कि भले ही कोरोना महामारी की रुकावट की यादें धुंधली हो रही हैं लेकिन कोविड-19 के कारण हुए बदलाव लंबे समय तक बने रहेंगे। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बाद कुछ शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन पाठ्यक्रम पेश करने की आदत हो गई है। डॉक्टर पंत ने कहा कि उनके विचार में ऑनलाइन पढ़ाई सबसे बड़ा धोखा है जब तक कि एक परिपक्व वयस्क इसे खुद नहीं चुन लेता। उन्होंने कहा कि हमें यह पता लगाना होगा कि प्रौद्योगिकी के साथ कैसे रहें और पढ़ने तथा सीखने की प्रक्रियाओं में इसका सर्वोत्तम उपयोग कैसे करें। उहोने कहा कि माता-पिता को अपने बच्चे के सीखने के हिस्से की अपनी जिम्मेदारी प्रभावी ढंग से निभानी होगी। उन्होंने कहा कि माता-पिता बच्चों के सीखने की जिम्मेदारी को पूरी तरह से स्कूलों पर नहीं छोड़ सकते।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजी न पढ़ाने, एक समान पाठ्यक्रम और बच्चों को पहली से पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा में शिक्षा देने जैसी दलीलें बेमानी हैं। उन्होंने कहा कि विविधता को ख़त्म नहीं किया जा सकता। डॉ. पंत ने कहा कि औपनिवेशिक हैंगओवर से छुटकारा पाने के प्रयास में हम बच्चों का भविष्य खराब नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में पढ़ाई में आ रही दिक्कतों को देखते हुए प्रत्येक शिक्षण संस्थान को अपने तरीके से नवोन्मेषी बनना होगा।

उन्होंने पाठ्यक्रम में बार-बार बदलाव का विरोध किया और कहा कि इससे बच्चों की भारतीय इतिहास की जानकारी आधी अधूरी रहेगी। उन्होंने पाठ्यक्रम से कुछ चयनित चैप्टर हटाये जाने को गलत करार दिया। उन्होंने मल्टीपल चॉइस क्वेश्चन की प्रथा को खत्म करने की भी पैरवी की। इस मौके पर चितकारा यूनिवर्सिटी की ओर से किरण कुलवाड़े ने विश्वविद्यालय को  लेकर एक प्रस्तुति भी दी। सेमिनार

में शिक्षकों ने विषय विशेषज्ञ से सवाल भी पूछे।

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