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12,000 फीट की ऊंचाई पर बागवानी की सफलता का किया प्रदर्शन

किन्नौर में मनाया सेब दिवस

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किन्नौर जिला में 12000 फीट की ऊंचाई पर मनाया सेब दिवस।
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किन्नौर की ठंडी मरुस्थलीय हंगरंग घाटी के मल्लिंग क्षेत्र में समुद्र तल से 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हाई ऐल्टिटूड प्रदर्शन बगीचे में सेब दिवस 2.0 का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम ने उच्च घनत्व सेब रोपण प्रणाली और प्राकृतिक खेती की उन उन्नत तकनीकों को प्रदर्शित किया, जो शुष्क समशीतोष्ण जलवायु के लिए विकसित की गई हैं। यह आयोजन डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) किन्नौर और क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, शारबो के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। जनजातीय उप-योजना परियोजना के अंतर्गत वर्ष 2021 में स्थापित इस मॉडल बगीचे में सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर, रेड वेलोक्स, ऑर्गन स्पर-2 और गाला वैल जैसी दस प्रीमियम सेब किस्में सीड्लिंग रूटस्टॉक पर लगाई गई हैं। यह बगीचे अब दुर्गम उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उच्च घनत्व बागवानी की संभावनाओं का प्रतीक बन गये हैं।

कार्यक्रम का शुभारंभ पूह खंड की बीडीसी सदस्य पद्मा दोर्जे द्वारा किया गया। इस अवसर पर 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें सेब उत्पादक, ग्राम पंचायत प्रतिनिधि, बागवानी विभाग और आत्मा के अधिकारी तथा विश्वविद्यालय के बी.एससी. (औद्यानिकी) विद्यार्थी शामिल थे, जो वर्तमान में ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव कार्यक्रम के तहत किन्नौर में कार्यरत हैं। इस अवसर पर फल वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ. अरुण कुमार ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाने हेतु क्षेत्र-आधारित नवाचारों का प्रदर्शन किया। सह-निदेशक एवं केवीके किन्नौर के प्रमुख डॉ. प्रमोद शर्मा ने सीडलिंग रूटस्टॉक पर उच्च घनत्व रोपण और प्राकृतिक खेती को अपनाने के महत्व पर बल दिया। उन्होंने बागीचे प्रबंधन में प्रकृति-आधारित समाधान, बहुस्तरीय फसली प्रणाली और फसल विविधीकरण को दीर्घकालिक कृषि स्थिरता के लिए आवश्यक बताया।

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विषय विशेषज्ञ (औद्यानिकी) देव राज कैथ ने किसानों को विभिन्न सरकारी योजनाओं, फसल बीमा, सब्सिडी योजनाओं और जैविक कीट प्रबंधन तकनीकों के बारे में जानकारी दी। कृषि विभाग की आत्मा परियोजना से जय कुमार ने बताया कि 1,000 से अधिक किसान प्राकृतिक खेती क्लस्टर पहल से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि नाको, चांगो, रिब्बा, आसरंग, थांगी और कानम जैसे छह गांवों को प्राकृतिक खेती मॉडल क्लस्टर के रूप में विकसित किया गया है। फल वैज्ञानिक डॉ. दीपिका नेगी ने सेब बागानों में स्ट्रॉबेरी जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों को शामिल करने की सलाह दी, जिससे किसानों को अतिरिक्त आय हो सके। प्रगतिशील किसान-शलकर के केसांग तोबदेन और चांगो के कृष्ण चंद ने अपनी प्राकृतिक खेती की सफलता की कहानियाँ साझा कर अन्य किसानों को प्रेरित किया। कार्यक्रम में छात्रों ने भी अपने अनुभव साझा किए और किन्नौर के सेब उत्पादकों की दृढ़ता और नवाचार की सराहना की।

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