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कर्मचारियों के मुद्दों में जनहित याचिकाओं से बचें न्यायालय : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने प्रेम भारद्वाज बनाम हिमाचल सरकार की अपील की खारिज
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सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार की सिविल अपील संख्या 1114/2011 बनाम प्रेम भारद्वाज पर वीरवार को सुनवाई करते हुए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के 20 नवंबर 2008 के फैसले में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की न्यायधीश राजेश बिंदल और न्यायाधीश मनमोहन की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता यह सिद्ध करने में असफल रहे हैं कि सरकार द्वारा 23 अगस्त 1994 और 20 जून 1995 को जारी अधिसूचनाएं, जिनके तहत 89 कॉलेज प्राध्यापकों की सेवाओं को नियमित किया गया था, गैरकानूनी या नियमों के विरुद्ध हैं।

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इन अधिसूचनाओं के चलते उन्हें और अन्य योग्य उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित कर दिया गया, जो कि कर्नाटक सरकार बनाम उमा देवी (2006) के निर्णय के खिलाफ है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता प्रेम भारद्वाज पहले ही हाईकोर्ट के निर्णय से लगभग 10 वर्ष पूर्व लेक्चरर के पद पर नियुक्त हो चुके थे। वहीं, पिटीशनर नंबर 2 रामलाल मार्कण्डेय हिमाचल प्रदेश विधानसभा के विधायक बन चुके हैं, और पिटीशनर संख्या 3 से 6 तक कभी न तो हाईकोर्ट और न ही ट्रिब्यूनल में पक्षकार रहे थे।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्ष 1994 और 1995 में जिन याचिकाकर्ताओं की नियुक्तियां हुईं, वे भर्ती एवं पदोन्नति नियमों को प्रभावित नहीं करती हैं। ऐसे में यह व्यक्तिगत हित की जगह जनहित में दायर याचिका (पीआईएल) साबित होती है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि इस प्रकार के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय समेत अन्य न्यायालयों को राज्य सरकार की नीतियों में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता विनोद शर्मा ने दलील दी कि वो अपना संपूर्ण सेवाकाल पूरा कर चुके हैं, जबकि उत्तरदाताओं (लेक्चरर्स) की सेवा अवधि अंतिम सुनवाई से पहले ही समाप्त हो चुकी थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इससे प्रत्येक लेक्चरर को वेतन व पेंशन के रूप में 20 से 25 लाख रुपये तक की हानि हुई है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वर्ष 2006 में लागू की गई पीटीए नीति को याचिका में चुनौती दी गई थी, जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस नीति को वैध ठहरा चुका है। इस केस में याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता रोहन गुप्ता जबकि रिस्पोंडेंट की तरफ से अधिवक्ता विनोद शर्मा, यूजीसी की तरफ से अधिवक्ता अनिल नाग व हिमाचल प्रदेश सरकार के अप्पर अधिवक्ता कार्तिकेय रस्तोगी ने पैरवी की। जिसमें बुधवार (30 जुलाई) को दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को यह फैसला दिया है।

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