ज्ञान ठाकुर/हप्र
शिमला, 26 मई
हिमाचल में लोकसभा चुनाव एक जून को होना है। चुनाव से पहले संसद की दहलीज लांघने के प्रयास में एक दूसरे के आमने सामने खड़ी कांग्रेस व भाजपा ने मतदाताओं को रिझाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। राज्य में लोकसभा का चुनाव प्रचार अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया है। राज्य की चार लोकसभा व छह विधानसभा उप चुनाव वाली सीटों पर 72 घंटे बाद चुनाव प्रचार थम जाएगा। करीब अढ़ाई माह के चुनाव प्रचार के शोर में प्रदेश के असल मुद्दों पर चर्चा नदारद पाई गई। प्रदेश में 8 लाख से अधिक बेरोजगारों की फौज होने के बावजूद न तो रोजगार सृजन पर चर्चा हुई और बीते साल शताब्दी की सबसे भयावह प्राकृतिक आपदा झेल चुके हिमाचल में जलवायु परिवर्तन पर भी चर्चा नहीं हुई। आपदा राहत को लेकर जरूर कांग्रेस व भाजपा एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। चुनावी उम्मीदवारों ने भी असल मुद्दों पर अपना विजन मतदाताओं के समक्ष नहीं रखा। आलम यह है कि मतदान के 120 घंटे पहले भी हिमाचल का मतदाता खामोश है। राजनेता इनकी थाह नहीं ले पा रहे। हिमाचल में बेरोजगारी हमेशा ही बड़ा मुद्दा रहा है। साल दर साल बढ़ती बेरोजगारों को फौज सरकारों के रोजगार के दावों की पोल खोल रही है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रोजगार को मुद्दा बनाया था। मगर अब लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी दल लोगों को यह नहीं बता रहा कि उसने डेढ़ साल में कितने रोजगार दिए। यही स्थिति भाजपा की भी है। भाजपा 10 सालों में मोदी सरकार के रोजगार के आंकड़ों को भी लोगों तक नहीं पहुंचा पा रही।
हिमाचल ने बीते साल शताब्दी की सबसे भयावह प्राकृतिक आपदा का सामना किया। लगभग 500 लोगों की जानें गई। हजारों घर तबाह हो गए। सड़कों, पुलों, पावर प्रोजेक्टों को भारी नुकसान हुआ। कांग्रेस आपदा राहत के मुद्दे पर हिमाचल की उपेक्षा का आरोप केंद्र पर लगा रही है। भाजपा लगातार केंद्र से जारी आपदा राहत राशि को लेकर कांग्रेस पर पलटवार कर रही है। पीएम मोदी भी आपदा राहत राशि में बंदरबांट का आरोप प्रदेश सरकार पर लगा चुके हैं। मगर राजनीतिक मंचों से प्रदेश में जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझने के मुद्दे पर चर्चा नहीं हो रही है। हिमाचल में रेलवे का विस्तार, सड़कों का निर्माण, औद्योगिक निवेश बढ़ा कर तथा पर्यटन विकास की योजनाओं को धरातल पर उतार कर रोजगार सृजन संभव है।