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भुंडा नरमेध यज्ञ : सूरत राम ने दिव्य रस्सी से पार की मौत की खाई

शिमला, 4 जनवरी (हप्र) हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला के रोहड़ू की स्पैल वैली में स्थित दलगांव में जारी भुंडा महायज्ञ में आज सबसे अहम ‘बेड़ा’ की रस्म पूरी कर ली गई। सूरत राम ने बेड़ा की रस्म निभाई। सूरत...
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शिमला, 4 जनवरी (हप्र)

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला के रोहड़ू की स्पैल वैली में स्थित दलगांव में जारी भुंडा महायज्ञ में आज सबसे अहम ‘बेड़ा’ की रस्म पूरी कर ली गई। सूरत राम ने बेड़ा की रस्म निभाई। सूरत राम ने घास से बनी रस्सी पर चढ़ कर मौत की घाटी को पार किया। इससे पहले दोपहर में रस्सी टूटने से लोग व श्रद्धालु चिंता में थे। भुंडा महायज्ञ के साक्षी बनने के लिए लाखों की संख्या में लोग दलगांव पहुंचे। मगर ये सभी दोपहर में उस वक्त चिंता में पड़ गए जब विधि विधान के साथ एक रस्सी को बांधने का काम किया जा रहा था। उसी समय अचानक बीच से ये दिव्य रस्सी टूट गई। इसके बाद रस्सी को दोबारा बांधा गया। इसके बाद शाम के वक्त सूरत राम ने मौत की खाई को पार किया। भुंडा महायज्ञ में तीन देवता और तीन परशुराम पहुंचे हैं। देवता बकरालू महाराज दो तहसीलों रोहड़ू व रामपुर के देवता हैं। भुंडा महायज्ञ देवता महेश्वर, देवता बौंद्रा व देवता बकरालू व देवता मोहर्रिश प्रेम का प्रतीक है। रोहड़ू उपमंडल के नौ गांव के लोग इस यज्ञ में सहयोग कर रहे हैं। भुंडा महायज्ञ के लिए एक लाख से अधिक निमंत्रण दिए गए हैं।

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बेड़ा जाति के लोग निभाते हैं बेड़ा की रस्म

भुंडा महायज्ञ के दौरान बेड़ा रस्सी के जरिए मौत की घाटी को लांघते हैं। यह रस्सी दिव्य होती है और इसे मूंज कहा जाता है। इसे विशेष प्रकार के नर्म घास से बनाया जाता है। रस्सी को खाई के दो सिरों के बीच बांधा जाता है। भुंडा महायज्ञ की रस्सी को बेड़ा खुद तैयार करते हैं। बेड़ा उस पवित्र शख्स को कहा जाता है जो रस्सी से खाई को लांघते हैं। बेड़ा जाति के लोग ही इस परंपरा को निभाते हैं। बेड़ा सूरत राम ने बताया कि रस्सी बनाने में उन्हें अढ़ाई महीने का समय लगा।

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