चंबा सदर के अतिरिक्त विस क्षेत्र भटियात व जिला कांगड़ा में भी मनाया जाता है मिंजर पर्व
गौर हो कि रियासतकाल में दसवीं शताब्दी के इतिहास के दर्ज पन्नों पर अगर नजर डाली जाए तो मिंजर पर्व का आगाज जिक्र तत्कालीन शासक साहिल वर्मन से जुड़ा हुआ है। जिसमें शासक वर्मन ने पड़ोसी रियासत कांगड़ा व जम्मू पर युद्ध में विजय हासिल की थी। जिसमें तत्काल चंबा रियासत में प्रवेश दौरान पहले रियासत के द्वार जिला कांगड़ा के द्रमण क्षेत्र में स्थित रेहलू गांव व भटियात के टूंडी, समोट, सिहुंता व चुवाड़ी में मक्की फसलों को लहराता देख युद्ध विजय के प्रतीत रूप में शासक साहिल वर्मन ने जीत के कई कार्यक्रम आयोजित किये।* वहीं चंबा रियासत नगरी में युद्ध जीत पर्व को पूर्ण रूप से तत्काल शासक वर्मन ने विकसित किया। जिसमें जनता के व्यापार लेन-देन के लिए जीत के पर्व को मेले का रूप दे दिया। चंबा जिला के विधानसभा क्षेत्र भटियात व कांगड़ा क्षेत्र में रियासतकाल में प्रजा द्वारा चीड़ की पत्तियों के उपरी भाग पर रेशम की डोर बांध कर मिंजर तैयार की गई। इस प्राचीन मिंजर कारीगरी युक्त चीड़ पत्तियों की मिंजर बनाने की रिवाज आज भी भटियात व जिला कांगड़ा के कई भागों में देखने को मिलता है। भटियात क्षेत्र में भी मिंजर आगाज सावन के दूसरे रविवार को मिंजर बनाना आरंभ कर दिया जाता है।
भटियात व कांगड़ा में मिंजर आगाज व विर्सजन की रस्म
भगवान विष्णु व शिव भगवान की सावन के दूसरे रविवार को पूजा से ही भटियात व कांगड़ा में भी मिंजर पर्व का आगाज होता है। भटियात में टूंडी, समोट, सिहुंता व चुवाड़ी में इन क्षेत्रों में होकर गुजरने वाली मुख्य खड्डों में व जिला कांगड़ा में के रेहलू गांव म रेहलू नामक खड्ड में मिंजर विर्सजन की रस्म विधिवत्त पूजा अर्चना के साथ निर्वाह की जाती है। जिससे यहां के स्थानीय निवासी मिंजर पर्व को दसवीं शताब्दी के तत्कालीन शासक साहिल वर्मन से जुड़ा हुआ एवं तब से चली आ रही रस्म के साथ आंकते है।