आचार्य देवव्रत अब महाराष्ट्र में भी जगाएंगे नेचुरल फार्मिंग की अलख
आर्य समाज के विचारों से प्रेरित, पर्यावरण और कृषि सुधार के प्रति समर्पित, आचार्य देवव्रत को महाराष्ट्र के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। वे गुजरात के राज्यपाल के रूप में कार्यरत हैं। हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल से अधिक उन्हें प्राकृतिक कृषि की दिशा में व्यापक कार्य करने के लिए आज भी याद किया जाता है। देश में उन्होंने प्राकृतिक कृषि पद्धति को एक नई पहचान दी है, जिसका जिक्र समय-समय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करते रहे हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थापित उनका गुरुकुल आज प्राकृतिक कृषि के प्रशिक्षण का केंद्र बन चुका है और उनके कृषि फार्म को देश-विदेश के वैज्ञानिक मॉडल फॉर्म के तौर पर अध्ययन के लिए आते हैं और किसान इसे देखकर प्रेरणा लेते हैं।
गुजरात और हरियाणा के बाद अब महाराष्ट्र में भी उनके अतिरिक्त कार्यभार से किसानों में नई उम्मीद जगी है। उनके अनुभव और दूरदृष्टि से उम्मीद की जा रही है कि वे प्राकृतिक कृषि को न केवल एक तकनीक बल्कि जीवन का मूल्य मानते हुए व्यापक स्तर पर जागरूकता और परिवर्तन का नेतृत्व करेंगे।
आचार्य देवव्रत का कहना है कि टिकाऊ खेती, पर्यावरण संरक्षण और ग्राम स्वावलंबन केवल नीतियों से नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर संवाद, विश्वास और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व से संभव है। उनके प्रयासों ने साबित कर दिया है कि यदि सही दिशा में नेतृत्व और परिश्रम हो तो खेती में क्रांति लाई जा सकती है।
आचार्य देवव्रत ने 12 अगस्त, 2015 से 21 जुलाई, 2019 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने प्रदेश में ‘शून्य लागत प्राकृतिक कृषि’ का जो बीजारोपण किया, वह आज देशभर में एक प्रेरक अभियान बन चुका है।
राष्ट्रीय पहचान और प्रेरणा का स्रोत
हिमाचल प्रदेश में उनके कार्यों ने उन्हें ‘प्राकृतिक कृषि पद्धति के अविष्कारक’ के रूप में देश भर में पहचान दिलाई। कृषि विशेषज्ञों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और नीति निर्माताओं ने उन्हें एक ऐसे नेतृत्वकर्ता के रूप में सराहा जिसने आधुनिक कृषि संकटों के बीच प्रकृति से जुड़ने का रास्ता दिखाया।