भगवान श्री परशुराम के जन्मोत्सव पर राजगढ़ में निकली भव्य शोभायात्रा, जयघोषों से गूंजा समूचा क्षेत्र
अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर विष्णु के छठे अवतार भगवान श्री परशुराम का जन्मोत्सव राजगढ़ में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। इसका आयोजन ब्राह्मण समाज कल्याण इकाई राजगढ़ के सौजन्य से किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ स्थानीय शिरगुल मंदिर के प्रांगण में हवन यज्ञ से किया गया, जिसमें ब्राह्मण समाज कल्याण इकाई राजगढ़ पदाधिकारियों ने भाग लिया। तदोपंरात शिरगुल मंदिर से पारंपरिक वाद्ययंत्रों और वैदिक मंत्रों के साथ शिरगुल चौक तक भव्य शोभा यात्रा निकाली गई, जिसमें एसडीएम राजगढ़ राजकुमार ठाकुर, जिप सदस्य सतीश ठाकुर सहित समाज के सभी वर्गों के सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। इस दौरान भगवान श्री परशुराम के जयघोषों से समूचा राजगढ़ गुंजायमान हो उठा। शिरगुल चौक पर आयोजित कार्यक्रम में एसडीएम राजगढ़ राजकुमार ठाकुर ने अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भगवान परशुराम एक महान योद्धा थे, जिन्होंने धरा को बढ़ते पाप और आसुरी शक्तियों से मुक्त कराने के साथ धर्म की रक्षा के लिए अतुलनीय कार्य किया। आचार्य सुभाष शर्मा, पंडित सुनील शास्त्री और अनूप शर्मा ने इस मौके पर ओने विचार रखे। ब्राह्मण समाज कल्याण इकाई राजगढ़ के अध्यक्ष हरदेव भारद्वाज ने बताया कि भगवान श्री परशुराम के जन्मोत्सव पर इकाई की ओर से विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।
27 साल बाद देवशिला पर स्थापित भगवान श्री परशुराम की प्रतिमा को मिला शेड
भगवान श्री परशुराम जी के जन्मोत्सव से ठीक पहले पवित्र देवशिला पर स्थापित भगवान श्री परशुराम की आदमकद प्रतिमा को शेड मिल गया। ग्राम पंचायत खालाक्यार और श्री रेणुका जी विकास बोर्ड के संयुक्त तत्वाधान में यहां एक सुंदर शेड का निर्माण किया गया है। पिछले लगभग 27 साल से प्रतिमा बिना शेड के थी। मंगलवार को श्री परशुराम के जन्मोत्सव पर यहां हवन यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य याज्ञिक भरत सिंह ठाकुर मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री रेणुका जी विकास बोर्ड, सदस्य इंद्रप्रकाश गोयल, इंद्र सिंह ठाकुर, रमेश भारद्वाज भंडारी जम्मू कोटी भगवान परशुराम जी मंदिर और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया। इस दौरान कई श्रद्धालुओं ने भी पूर्णाहुति डाली। पवित्र देवशिला के बारे में लोगों में मान्यता है कि भगवान श्री परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु से युद्ध से पूर्व इसी पवित्र स्थान पर खड़े होकर अपनी सेना को संबोधित किया था और दुष्टों के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजाया था।