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सुबाथू क्षेत्र से मिली 4.5 करोड़ वर्ष पुरानी स्नेकहेड मछली की खोपड़ी!

यशपाल कपूर/निस प्रसिद्ध भूविज्ञानी और टेथिस फॉसिल म्यूजय़िम के संस्थापक डॉ. रितेश आर्या ने सोलन की सुबाथू संरचना (सुबाथू फॉरमेशन) से लगभग 4.5 करोड़ वर्ष पुरानी स्नेकहैड मछली की खोपड़ी की खोज की है। यह उल्लेखनीय खोज मीठे पानी की...

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सोलन के सुबाथू फॉरमेशन में मिले स्नेकहैड मछली के फॉसिल।-निस
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यशपाल कपूर/निस

प्रसिद्ध भूविज्ञानी और टेथिस फॉसिल म्यूजय़िम के संस्थापक डॉ. रितेश आर्या ने सोलन की सुबाथू संरचना (सुबाथू फॉरमेशन) से लगभग 4.5 करोड़ वर्ष पुरानी स्नेकहैड मछली की खोपड़ी की खोज की है। यह उल्लेखनीय खोज मीठे पानी की मछलियों के विकास और टेथिस सागर के भूवैज्ञानिक इतिहास को समझने में नई दिशा प्रदान करेगी। डॉ. आर्या ने यह जीवाश्म एक छोटी धारा में खोजा, जो सुबाथू संरचना की परतों को काटते हुए बहती है। ये अवसादी चट्टानें उस काल की हैं जब टेथिस सागर धीरे-धीरे समाप्त हो रहा था और भारत-अफ्रीका से अलग होकर गोंडवाना भू-भाग का हिस्सा बनते हुए एशिया से टकराने की दिशा में अग्रसर था। उस समय तक हिमालय पर्वतों का निर्माण नहीं हुआ था और पूरी धरती पर टेथिस महासागर का प्रभुत्व था।

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समुद्री अवसादों में मीठे पानी की मछली का मिलना यह सिद्ध करता है कि सुबाथू की ये परतें इयोसीन युग में एक उथले समुद्री वातावरण में बनी थीं। यह खोज उस संक्रमणकालीन पारिस्थितिकी तंत्र की झलक देती है, जब भारत उत्तर की ओर बढ़ते हुए महाद्वीपीय परिस्थितियों में परिवर्तित हो रहा था।

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इस शोध पर क्या कहा वैज्ञानिकों ने

इस जीवाश्म की पहचान पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के भूविज्ञान विभाग के प्रो. राजीव पटनायक ने इसे स्नेकहैड फिश के रूप में की, जो ‘चन्नीदे’ परिवार से संबंधित है। प्रो. अशोक साहनी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रख्यात कशेरुकी जीवाश्म विशेषज्ञ ने कहा कि यद्यपि पहले भी सुबाथू से मछलियों के जीवाश्मों की सूचना मिली है, परंतु डॉ. आर्या द्वारा की गई यह खोज अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो हिमालय की तराइयों में मीठे पानी की मछलियों के प्रारंभिक विकास का मूल्यवान प्रमाण प्रदान करती है। पूर्ववर्ती अध्ययनों ने भी इस बात पर बल दिया है कि सुबाथू संरचना हिमालय के उत्थान के दौरान समुद्री से महाद्वीपीय पारिस्थितिक तंत्र में हुए परिवर्तन को दर्ज करती है। यह नई खोज उन सभी अध्ययनों से जुडक़र भारत के भूवैज्ञानिक और जैविक विकास की कहानी में एक महत्वपूर्ण कड़ी जोड़ती है।

1988 से शोध में जुटे हैं डॉ. रितेश आर्या 

डॉ. रितेश आर्या 1988 से जीवाश्म एकत्र कर रहे हैं। उस समय वे पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के भूविज्ञान विभाग में स्नातक विद्यार्थी थे। कसौली और आसपास के क्षेत्रों से उनके द्वारा खोजे गए जीवाश्मों में गैस्ट्रोपोड, बाइवाल्व, शार्क और व्हेल शामिल हैं। ये खोजें लोकप्रिय विज्ञान धारावाहिकों ‘टर्निंग प्वाइंट’ और ‘सुरभि’ में भी प्रदर्शित की गई थीं। ये सभी जीवाश्म अब टेथिस फॉसिल म्यूजय़िम, डंगयारी (धर्मपुर-सुबाथू रोड) में प्रदर्शित हैं। डॉ. आर्या लगातार यह मांग कर रहे हैं कि कसौली और आसपास के क्षेत्रों को एक जियोपार्क घोषित किया जाए ताकि इन अमूल्य जीवाश्मों को संरक्षित किया जा सके और क्षेत्र में भू-पर्यटन शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा मिले।

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