पुरुषोत्तम शर्मा/हप्र
सोनीपत, 19 दिसंबर
आंदोलन देश और प्रदेश में बहुत हुए हैं और भीड़ भी खूब जुटी हैं। अन्ना आंदोलन में भी हुजूम दिल्ली में दिखता था, लेकिन आधी आबादी का जैसा जोश और हिस्सेदारी इस आंदोलन में देखने को मिल रही है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर किसानों के साथ खड़ी हैं। महिलाओं का कहना है कि जब तक सरकार तीनों काले कानून रद्द नहीं करती तब तक वो मैदान में डटी रहेंगी।
कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए चल रहे किसानों के आंदोलन में पुराने आंदोलनों से काफी कुछ अलग हो रहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी किसान आंदोलन में महिलाओं की इतनी ज्यादा भागीदारी हो रही है और वह इतना लंबा चल रहे आंदोलन में लगातार धरने पर डटी हुई है। जहां पहले केवल पंजाब की महिलाएं आंदोलन में शामिल थी, वहीं अब हरियाणा, यूपी, दिल्ली, राजस्थान तक की महिलाएं आंदोलन में शामिल हो रही है। वह धरनास्थल पर बैठती हैं, तो खाना बनाने से लेकर अन्य काम भी करती है। जालंधर की गुरप्रीत कहती हैं कि सरकार ने जिस तरह से कृषि कानून बनाए है, उससे किसान की जमीन ही नहीं बचेगी। परिवार चलाने के लिए जमीन ही एक जरिया है, क्योंकि खेती करके ही परिवार का गुजारा होता है। जब जमीन ही नहीं रहेगी,तो खेती कैसे होगी और परिवार कैसे चलेगा। इसलिए हम भी आंदोलन में शामिल होने आई है और जब तक सरकार यह कानून रद्द नहीं करती है, तब तक हमारा आंदोलन ऐसे ही जारी रहेगा। इसी तरह दिल्ली की जसबीर कौर कहती हैं कि यहां दो दिन पहले आए थे और जब तक आंदोलन चलेगा, तभी तक यहां रहेंगे। हम शांति से आंदोलन कर रहे है और सरकार से हम मांग करते है कि कृषि कानूनों को रद्द किया जाए। क्योंकि कृषि कानूनों से किसानों को कोई फायदा नहीं है। किसान नहीं चाहते है कि यह कृषि कानून रहे तो सरकार को इसे रद्द कर देना चाहिए। सरकार को जल्द ही कृषि कानून रद्द करने चाहिए, जिससे सभी किसान अपने घर जा सके।
खेती बचाने के लिए कुछ भी करेंगे
इसी तरह पंजाब की सतिंदर दीप कौर कहती हैं कि सरकार ने जिन कृषि कानूनों को बनाया है, उनको रद्द कराने के लिए हम यहां आई है। यहां हम केवल पंजाब से नहीं आई है, बल्कि हरियाणा, यूपी, राजस्थान, दिल्ली सभी जगहों से हमारी बहनें आई हुई है। हम अपनी खेती बचाने के लिए यहां आई है और हमारे परिवार भी यहां आए है। पहले ही खेती से केवल परिवार का गुजारा होता है तो काफी जरूरतों को कम करना पड़ता है। अब इन कृषि कानूनों के कारण परिवार के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। इससे बाद में मरने से अच्छा है कि यहां रहकर ही मर जाएंगे।