सुभाष पौलस्त्य/निस
पिहोवा, 25 जुलाई
कोरोना कॉल में ऑक्सीजन को लेकर मची हाय-तौबा के बाद सरकार ऑक्सीजन लगाने वाले पेड़ों के प्रति कितनी जागरूक है। इसका प्रमाण पिहोवा के निकट सरस्वती वन से मशहूर स्योंसर जंगल है।
इस जंगल में ऑक्सीजन व फल देने वाले पेड़ गिनती के ही हैं। लगभग 11000 एकड़ में फैला स्योंसर जंगल में इस बार आजादी के बाद पहली बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने राज्यस्तरीय वन महोत्सव बनाकर जंगल में मंगल तो कर दिया, परंतु पेड़ों के लिए कुछ भी नहीं हुआ। 11000 एकड़ में फैला यह जंगल, 7000 एकड़ कैथल जिला में पड़ता है तथा 4000 एकड़ कुरुक्षेत्र जिला में पड़ता है। इस जंगल की भूमि में 80 प्रतिशत क्षेत्रफल में मात्र पहाड़ी कीकर के पेड़ यानी झाड़ियां हैं।
जबकि 18 प्रतिशत क्षेत्र में सफेदे के वृक्ष हैं। मात्र 2 प्रतिशत क्षेत्र में ही फलदार व अन्य छायादार पौधे हैं। ऑक्सीजन देने वाले पीपल, बड़, नीम, गूलर आदि अन्य वृक्षों की संख्या गिनीचुनी है। एक ओर सरकार ऑक्सीजन के लिए पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित व प्रेरित कर रही है। दूसरी ओर अपने ही क्षेत्र में सरकार का वन विभाग इससे उदासीन है।
हैरानी की बात है कि इस क्षेत्र में फैले पेड़ों की संख्या के बारे में खेल मंत्री ने भी मुख्यमंत्री से बात की है, परंतु ऑक्सीजन छोड़ने वाले वृक्षों के बारे में कोई निर्णय नहीं हुआ। इस जंगलात के बारे कैथल स्योसर जिला वन क्षेत्र के अधिकारियों अजय नैन, बलजीत सिंह, वन्य प्राणी निरीक्षक रामकेस से बात की तो पता चला कि अधिकांश पहाड़ी कीकर, सफेदे के पेड़ ही लगे हुए हैं।
कीकर का पेड़ ऑक्सीजन कम देता है, कार्बन डाइऑक्साइड ज्यादा छोड़ता है। ये अपने पास घास भी पनपने नहीं देता। पानी व भूमि बंजर करने का काम भी करता है। पहाड़ी कीकर की लकड़ी भी किसी काम नही आती।
वहीं, सफेदे के पेड़ भी पानी सोखते हैं। इस बारे प्यारा सिंह, हरि सिंह जगीर, मलविद्र सिंंह सहित कई किसानों ने बताया पानी खत्म करने में सबसे ज्यादा खतरनाक पेड़ पहाड़ी कीकर व सफेदे के पेड़ हैं। हैरानी की बात है कि वर्ष 2014 व 15 में सरकार ने 10 साल के लिए 20 हजार से 25000 तक प्रतिवर्ष फलदार पेड़ लगाने की योजना बनाई थी, परंतु यह योजना पिछले 2 साल से बंद पड़ी है। इस 11000 के वन क्षेत्र में 2 वर्ष में एक भी फलदार पेड़ नहीं लगाया गया।
दिलचस्प बात है कि इस जंगलात में वन्य प्राणी विहार भी बना हुआ है, जिसमें आडा हिरण जो एक दुर्लभ किस्म है हिरण की। गीदड़, जंगली सुअर, नीलगाय, बंदर, खरगोश, गोह दुर्लभ किस्म के सर्प, अजगर, मॉनीटर गेट, मोर, तीतर वगैरह न जाने कितने प्रकार के वन्य जंतु भी हैं। अधिकारी ने बताया कि तेंदुआ भी है, परंतु पिछले 15 दिनों से उसके पैरों के निशां भी नहीं दिख रहे। खाने के लिए इन जंतुओं के लिए चंद फलदार पेड़ हैं।
हजारों की संख्या में भूखे बंदर सड़क किनारे बैठे रहते हैं तथा राहगीरों की इंतजार करते रहते हैं कि कोई आएगा व उन्हें कुछ खाने को देगा।
अधिकारी ने बताया
नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2011 व 12 में ही जंगल में पेड़ लगाए गए थे। उसके बाद किसी प्रकार का कोई पेड़ नहीं लगाया गया। गुल्लर, जामुन, बड़, नीम, पीपल, लिसोड़ा के पेड़ गिनीचुनी मात्रा में ही हैं। हालांकि वह मक्का, बाजरा अन्य फसलें फायरलाइन पर लगा देते हैं, जिससे इन वन्य पशुओं को भोजन मिल सके। कुल मिलाकर कहने के लिए यह स्योसर जंगल व वन्य प्राणी विहार है, वास्तव में यह वन्यजीवों के लिए एक कैदघर है। हैरानी की बात है कि इस जंगल में कृत्रिम झील बनाने व अन्य मनोरंजन स्थल बनाने व पशुओं के लिए पीने के पानी उपलब्ध कराने की योजना अनेक बार बनाई गई, परंतु आज तक यह योजना सिरे नहीं चढ़ी। बनाई गई योजनाएं कागजों में ही दम तोड़ गई।