जहां गूंजती थी वेदों की ऋचाएं, अब पड़े हैं दुर्लभ मूर्तियों के भग्नावशेष
प्राचीन और महाभारत युद्ध का साक्षी रहा तीर्थस्थल पिहोवा, सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। इसी सरस्वती नदी के तट पर अनेक ऋषियों, महर्षियों के आश्रम स्थल रहे हैं। वहीं पर इसके तट पर ही स्थित है एक...
प्राचीन और महाभारत युद्ध का साक्षी रहा तीर्थस्थल पिहोवा, सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। इसी सरस्वती नदी के तट पर अनेक ऋषियों, महर्षियों के आश्रम स्थल रहे हैं। वहीं पर इसके तट पर ही स्थित है एक उपेक्षित स्थान विश्वामित्र का टीला। जो अपने गर्भ में अनेक पुरानी मूर्तियां व सभ्यता समेटे हुए है। विश्वामित्र का टीला, जहां कभी यज्ञ, वेदों के ऋचाएं गूंजती थीं, वहां आज सर्प व जहरीले जीव-जंतु घूम रहे हैं। उपेक्षित पड़ा यह क्षेत्र आबादी में आ गया है, जिस कारण जहरीले जीव-जंतु लोगों के घरों में भी घुस जाते हैं।
सरस्वती नदी के तट पर ही एक ओर ऋषि वशिष्ठ का आश्रम रहा है। जहां पर वर्तमान में विशिष्ठेश्वर महादेव मंदिर है। वहीं, इससे कुछ दूरी पर महर्षि विश्वामित्र की तपस्थली भी रही है। गुप्त काल में यहां विष्णु मंदिर, विश्वामित्र का मंदिर बनाए गए थे, जो समय के थपेड़ों में पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं। शेष बचा है तो केवल वहां पड़ी खंडित मूर्तियां व पुरानी ईंटें। यह दीगर बात है कि इस स्थान को बचाने के लिए पुरातत्व विभाग ने भी यहां पर एक बोर्ड लगाया हुआ है, जो इस स्थान के साथ-साथ गुर्जर व प्रतिहार सम्राटों के बारे में भी ज्ञान दे रहा है।
भगवान श्रीराम के ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र व ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ दोनों ही गुरु रहे हैं। दोनों की तकरार की गाथा सभी धार्मिक ग्रंथ व पुराण सुना रहे हैं। महर्षि वशिष्ठ व विश्वामित्र की तकरार के कारण ही सरस्वती को रक्त, मवाद की होकर बहना पड़ा था। इसके बहाव में भी उलटफेर कर दिया गया था। यह उलटफेर आज भी चलता है। इन्हीं विश्वामित्र की यह तपस्थली पर शताब्दी पुरानी और टूटी-फूटी मूर्तियां आज भी बिखरी पड़ी हैं। जमीन में दबी ईंटों की नींव, दीवारें व उखाड़ी गई ईंटें आज भी इसका प्रमाण दे रही हैं। लगभग आधा फीट से भी ज्यादा लंबाई-चौड़ाई वाली यह ईंटें तथा 5 से 7 फीट तक चौड़ी जमीन में दबी दीवारें, इसकी प्राचीनता की कहानी सुना रही हैं।
इतिहासकार बोले
इतिहासकार विनोद पचौली ने बताया कि लगभग तीस-पैंतीस वर्ष पूर्व यहां से लगभग 20 पुरानी मूर्तियां भी प्राप्त हुई थीं, जो पुरातत्व विभाग के पास कपड़ों में लिपटी पड़ी हैं। इन प्राचीन मूर्तियों को किसी भी स्थान पर नहीं लगाया गया। अनेक मूर्तियों के भग्नावशेष आज भी इस स्थान पर बिखरे पड़े हैं, जिनकी कोई भी सुध-बुध नहीं ले रहा।

