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तारीख पर तारीख आखिर कब होगा फैसला

पंचायती जमीन छुड़वाने के लिये डीसी की अदालत में 12 साल से चल रहा मुकदमा
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पानीपत के गांव बांध की ग्राम पंचायत की गऊ चरांद शामलात भूमि को छुड़वाने का मुकदमा पिछले 12 साल से डीसी की अदालत में चला आ रहा है। केस में बहस को लेकर अब 130 तारीख लग चुकी हैं, लेकिन अब तक मुकदमे का निपटारा नहीं हो सका। गऊ चरांद ज़मीन का यह मुक़दमा वर्ष 1993 से शामलात ठोला बदरु गांव बांध सतबीर सिंह आदि बनाम ग्राम पंचायत बांध के बीच चल रहा है। शामलात गऊ चरांद ज़मीन 1750 कनाल 10 मरले जिसकी मलकियत ग्राम पंचायत के पास, लेकिन गांव बांध के ठोला शामलात ने इस भूमि पर 1994 में अवैध कब्जा कर लिया था। इससे पहले 1993 में ग्राम पंचायत इस ज़मीन को सालाना 5 लाख रुपए पट्टे पर देती थी, जिस रुपये को गांव के विकास में लगाया जाता था। शामलात ठोला जिला अदालत से लेकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट तक में केस हार चुका है और फैसला ग्राम पंचायत बांध के हक में आया है। इसके बाद ठोला शामलात बदरु आदि ठोलो ने मिलकर 13 सितंबर 2013 को डीसी की अदालत में याचिका दायर कर दी। इन 10 वर्षों में पानीपत के कितने उपायुक्त आये और चले गये, लेकिन किसी ने मामले को निपटाने की कोशिश नहीं की। वर्ष 1961-62 में जमीन ग्राम पंचायत के नाम अलाॅट हुई थी। जिसकी देख रेख 1993 तक ग्राम पंचायत बांध ही कर रही थी। जानकारी के मुताबिक 4 जनवरी 2000 में शामलात ठोला की पिटीशन कर दी थी और पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भी निर्देश दिए कि मामले की सुनाई डीसी पानीपत करेंगे। डीसी के पास वर्ष 13 सिंतबर 2013 से मामला चला आ रहा है जिसमें गवाहियां हो चुकी हैं और अब तक बहस की 130 तारीख लग चुकी है, लेकिन बहस पूरी नहीं हुई।

वकील बोले- जल्द बहस शुरू नहीं हुई तो हाईकोर्ट का रूख करेंगे

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गांव बांध के ग्रामीण व आरटीआई एक्टिविस्ट जगत सिंह ने बताया कि ग्राम पंचायत शामलात भूमि गऊ चरांद समस्त ग्रामीणों की है। 1961-62 से ग्राम पंचायत मालिक है। ग्राम पंचायत और ठोला शामलात की मिलीभगत से ऐसा हो रहा है। यह जमीन ग्राम पंचायत 1993 में पट्टे पर 1 साल के लिए 5 लाख में देती थी। आज उसी जमीन को कुछ कब्जाधारी 3 करोड़ में देकर आपस में पैसे बांट लेना चाहते हैं। हमारी लड़ाई जब तक जारी रहेगी जब तक गऊ चरांद की शामलात पंचायती जमीन छूट नहीं जाती। सीनियर वकील रामभज सैनी ने बताया कि ऐसा ग्राम पंचायत और ठेला शामलात की मिलीभगत के साथ अन्य की मिलीभगत से हो रहा है। 12 साल में 130 से अधिक तारीखें लग चुकी हैं और कई डीसी बदल चुके हैं। ऐसा लगता है दाल में काला नहीं, पूरी दाल ही काली है। अगर समय रहते इस पर बहस नहीं करवाई गई तो हाईकोर्ट में जायेंगे।

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