जितेंद्र अग्रवाल/हप्र
अम्बाला शहर, 14 जून
गेहूं की सरकारी खरीद समाप्त हुए बेशक अभी 15 ही दिन हुए हैं लेकिन मंडियों में पिछले करीब सवा महीने से गेहूं आवक समाप्त हो चुकी है। फिर भी आढ़तियों को उनकी आढ़त और मजदूरी की रकम आज तक नहीं मिल पाई जिससे उनमें रोष पनप रहा है। मजदूरी करीब 35 रुपये प्रति क्विंटल और आढ़त 45 रुपये प्रति क्विंटल है। जिला में इस सीजन में जिला की सभी मंडियों व खरीद केंद्रों पर करीब 17 लाख क्विंटल गेहूं की आवक दर्ज की गई जो पिछले साल करीब 33 लाख क्विंटल थी।
दरअसल सरकार द्वारा अथवा नोडल एजेंसी खाद्य आपूर्ति विभाग की ओर आढ़तियों के करीब 13.5 करोड़ रुपये अटके पड़े हैं। मजदूर तो आढ़तियों से अपनी पेमेंट लेकर देस वापस चले गए यानी सरकार की ओर से मजदूरी जारी न होने पर आढ़तियों ने मजदूरों को अपनी जेब से ही करीब 5 करोड़ रुपये दे रखे हैं। अपनी जेब से मजदूरी देने और आढ़त के करोड़ों रुपये अटकने से आढ़तियों को आर्थिक तंगी झेलनी पड़ रही है। ऊपर से किसानों द्वारा अगली फसल के खर्चे के लिए पैसे मांगने का सिलसिला भी जारी है।
इस बार गेहूं का उत्पादन काफी कम हुआ है। अनाज मंडियों में गेहूं की बहुत कम आवक हुई है जबकि किसानों ने पहले ही आढ़तियों से खर्च के लिए ज्यादा रकम उठा रखी थी। गेहूं की पैदावार कम होने पर किसान को भी नुकसान हुआ। सरकार की ओर से खरीद का भुगतान सीधे किसान के खाते में कर दिया गया। इस बार घाटा होने पर किसान पिछली रकम देने की बजाय अगली फसल के लिए भी खर्च की मांग रहे हैं। इससे आढ़ती पर तीन तरफ से मार पड़ी है। एक तो गेहूं की आवक कम होने पर पिछला पैसा रुक गया। दूसरा आढ़त और मजदूरी जारी नहीं की गई। तीसरा मजदूरों को अपने जेब से भुगतान देना पड़ा। हरियाणा राज्य अनाज मंडी आढ़ती एसोसिएशन के संरक्षक दूनी चंद दानीपुर ने बताया कि एसोसिएशन कई बार आढ़त और मजदूरी जारी करने की मांग पहले ही कर चुकी है लेकिन आज तक कोई पेमेंट नहीं हुई।
अम्बाला शहर मार्केट कमेटी के निवर्तमान वाइस चेयरमैन एवं वयोवृद्ध आढ़ती भारत भूषण अग्रवाल की माने तो सरकार बेफिजूल की बातें और खर्च तो करती है लेकिन आढ़तियों की ओर ध्यान नहीं दे रही। आढ़तियों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे इससे उबर सकें लेकिन परिवार का पालन पोषण करने के लिए उसे ब्याज पर भी पैसे उठाकर सर्कल चलाना पड़ता है।
किसानों के सीधे भुगतान की तर्ज पर आढ़तियों को भी आढ़त व मजदूरी का भुगतान सीधे ही सरकार द्वारा भेजा जाना है। स्थानीय स्तर पर इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। पिछले वर्ष भी भुगतान सीधा ही हुआ था। फार्म आई के हिसाब से सब कुछ साथ ही तैयार हो जाता है।
-वीपी मलिक, डीएम हैफेड, अम्बाला