दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
ऐलनाबाद, 26 अक्तूबर
राजस्थान से सटे ऐलनाबाद हलके का सूख का दशकों पहले दूर हो चुका, लेकिन यहां के मतदाताओं ने अपनी चुप्पी अभी तक नहीं तोड़ी है। इस हलके के वोट लगभग साइलेंट हैं। गांवों में किस पार्टी का प्रभाव अधिक है, यह राजनीतिक दलों से जुड़े लोग तो भले ही अपने हिसाब से बताते हैं, लेकिन आम वोटर इन सब से दूर है। आम मतदाताओं में उपचुनाव को लेकर खासा उत्साह भी नहीं है। हो भी कैसे, उपचुनाव हो भी ऐसे वक्त में रहा है।
किसान बाहुल्य इस हलके के लोग इस वक्त खेतों में व्यस्त हैं। धान की कटाई का सीजन चल रहा है। साथ ही, कपास की भी चुगाई चल रही है। धान, नरमा व ग्वार के अलावा इस एरिया को कपास की बेल्ट के लिए भी जाना जाता है। किसानों के खेतों में व्यस्त होने की वजह से नेताओं के गांवों में दौरों के दौरान वहां मौजूद लोग ही उन्हें सुनने को पहुंचते हैं। असल भीड़ तो नेताओं के साथ चलने वाले काफिले में शामिल लोगों की रहती है। यह कहें कि नेताओं के साथ चलने वाले लोग ही उनका भाषण सुनते हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
लंबे वक्त के बाद किसी चुनाव में ऐसा नजारा भी पहली बार देखने को मिला है कि गांवों में किसी तरह के झंडे-बैनर नहीं हैं। आमतौर पर चुनाव में गांवों गलियां झंडे-बैनरों से अटी रहती हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं व वर्करों की भीड़ जरूर गांवों में दिखती है। गाड़ियों की आवाजाही के अलावा स्थानीय प्रशासन द्वारा लगातार गांवों में फोर्स के साथ किया जा रहा फ्लैग मार्च से ही ऐसा लगता है कि उपचुनाव चल रहा है।
धान और कपास का सीजन है। ऐसे में अधिकांश ग्रामीण पौ-फटते ही खेतों में का रूख कर लेते हैं। चंद ग्रामीण ऐसे हैं, जो सभी पार्टियों के नेताओं की अगवानी करते हैं, भाषण भी सुनते हैं। कम भीड़ के चलते कई गांवों में तो आलम ये है कि नेताओं की सभाओं में साथ आए वर्कर ग्रामीणों से ज्यादा दिखते हैं। वही वर्कर नेताओं के लिए तालियां बजाते हैं। चुनावी जंग में कौन आगे और कौन पीछे के सवाल पर यहां के ग्रामीण चुप्पी साधे हैं, बस यही कहते हैं, सबकी सुनेंगे, लेकिन मन की करेंगे। यह तो 30 अक्तूबर के चुनाव के बाद ही पता चलेगा ऊंट किस करवट बैठेगा। ऐलनाबाद में देहाती इलाका ज्यादा है, इस कारण ग्रामीणों पर नेताओं की निर्भरता बढ़ गई है। गांवों के लोगों से बातचीत में एक बात और निकल कर सामने आई कि बहुत से मतदाता अभी भी पार्टी प्रत्याशियों की ओर से संभावित ‘गिफ्ट’ का इंतजार कर रहे हैं। शायद, यहीं कारण हैं कि यहां के नेता भी यही कहते हैं कि चुनाव की सही तस्वीर 28-29 को ही तय होगी। दो दर्जन से भी अधिक गांवों के दौरे के दौरान ग्रामीणों की यह बात भी सामान्य थी कि इस इलाके में नहरी पार्टी का संकट नहीं है। अलबत्ता कुछ गांव ऐसे हैं, जो अधिक पानी की वजह से सेम की समस्या से जूझ रहे हैं। हजारों एकड़ भूमि सेमग्रस्त होने की वजह से यहां खेती नहीं हो पाती। ग्रामीणों का कहना है कि किसान खेतों में व्यस्त हैं, आजकल यहां एक गाड़ी जाती है, दूसरी चली आती है। कई बार तो वर्करों भीड़ ग्रामीणों से अधिक दिखती है, वही नेताओं की हां में हां मिलाते हैं।
ऐलनाबाद में सक्रिय राजनीति कर चुके और वरिष्ठ नेताओं में शामिल लालचंद खोड भी मानते हैं कि यहां का वोटर साइलेंट है। कभी यह नहीं पता लगने देता कि किसे वोट देना है और किसे नहीं। सुनते सभी की हैं, लेकिन करते अपने मन की हैं। एक और बड़ा पहलू यह है कि हलके के वोटर दो हिस्सों में बंटे हैं। एक वर्ग ऐसा है, जिसकी गिनती प्रो-चौटाला के रूप में होती है। वहीं एंटी-चौटाला वोटरों की संख्या भी काफी अधिक है लेकिन ये वोट बंटने की वजह से अभी तक इनेलो को इसका लाभ मिलता रहा है। फतेहाबाद से विधायक रहे व हुड्डा सरकार में मुख्य संसदीय सचिव रह चुके प्रहलाद सिंह गिलाखेड़ा दड़बा कलां से चुनाव लड़ चुके हैं। दड़बा कलां हलका खत्म होने के बाद इसके गांवों को ऐलनाबाद में शामिल कर दिया गया। गिलाखेड़ा भी मानते हैं कि ऐलनाबाद का वोटर लगभग साइलेंट ही रहता है।
भाजपा महिला मोर्चा की नामधारी बेल्ट में एंट्री
चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में भाजपा की महिला मोर्चा की पदाधिकारियों ने नामधारी सिख यानी पंजाबी बेल्ट में एंट्री कर ली है। भाजपा व जजपा नेताओं की गांवों में एंट्री नहीं के बोर्ड जिन गांवों में लगे थे, उन गांवों में भी भाजपा महिला मोर्चा की पदाधिकारियों ने लोगों से बातचीत की। महिला मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष सुमित्रा चौहान के नेतृत्व में पूरी टीम गांवों में जुटी है। अहम बात यह है कि इनमें भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व़ अटल बिहारी वाजपेयी की नाती और महिला मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष अंजलि मिश्रा भी शामिल हैं। पलवल प्रभारी योगिता धीर, झज्जर जिलाध्यक्ष नीना राठी, हिसार इंचार्ज राजबाला श्योराण व प्रदेश उपाध्यक्ष प्रवीन जोशी भी महिला मोर्चा की टीम के साथ डोर-टू-डोर प्रचार में लगी हैं। महिलाओं की इस टीम ने अमृतसर कलां, अमृतसर खुर्द, मिर्जापुर, तलवाड़ा, कुत्ताबढ़, जमाल सहित कई गांवों में लोगों के बीच पहुंच उनसे बातचीत की।
बढ़ गई चुनावी तपिश
ऐलनाबाद में प्रचार के आखिरी दौर में चुनावी तपिश बढ़ गई है। सीएम मनोहर लाल खट्टर व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने भी मंगलवार को ऐलनाबाद में मोर्चा संभाल लिया। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा के अलावा कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भी यहां प्रचार कर चुके हैं। प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा शुरू से ही हलके में डटी हैं। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी हलके में भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर चुके हैं। वहीं संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत के बुधवार को हलके में होने वाले दौरे पर सभी दलों की नज़रें हैं। वे ऐलनाबाद व नाथूश्री चौपटा में किसान-मजदूर व व्यापारी सम्मेलन करेंगे।
ग्रामीण कहते हैं चुनावी मेला
हरिनारायण, दिलावर सिंह, बलबीर सिंह व राजिंद्र का कहनना है कि पिछले सप्ताह से तो मेला लगा है। एक जाता है तो दूसरा चला आता है। सबसे बड़ी दुविधा तो ये है कि नेताओं ने रिश्तेदारों को वोट मांगने के लिए चुनावी मैदान में उतार दिया है। वोट मांगने आ रहे रिश्तेदार भी एक पार्टी के नहीं, अलग-अलग पार्टियों के हैं। ऐसे में ग्रामीण दुविधा में हैं कि किसे हां करे और किसे ना। सबको राजी करके भेजना पड़ रहा है।