अरुण नैथानी/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 29 जून
क्या आपने कभी पिछले बावन सालों से चौबीस घंटे निरंतर कीर्तन निर्विघ्न जारी रहने की आश्चर्यजनक बात सुनी है। अगर नहीं, तो चलिए, आज हम देश में कुछ नायाब नगीनों की तलाश में जुटी एक अनूठी यात्रा के सहयात्री बनकर अनहोनी को होनी करने वाली ऐसी ही कुछ किंवदंतियों से आपको अवगत या कहें रू-ब-रू कराते हैं। यह अलख है बाबा हरिबोल की जिन्होंने आजादी से पूर्व 1912 में उत्तर प्रदेश में राजघाट से ब्रजघाट तक गंगा के तट पर करीब 50 किलोमीटर लंबा मानव निर्मित बांध बनाकर चार सौ गांवों को बाढ़ से सुरक्षा दी, जो आज भी विद्यमान है। पंजाब के होशियारपुर में जन्मे बाबा हरिबोल ने इसके लिए पांच वर्ष तक चार सौ गांवों में कीर्तन करके लोगों को बांध बनाने को प्रेरित किया। फिर इन लोगों ने महज पांच माह में बिना किसी सरकारी मदद के काम पूरा किया। इस जन-सैलाब को देख अंग्रेज सरकार घबरा गई और इस बांध को रोकने के आदेश दिये। बाद में बाबा के अटल इरादों के सामने ब्रिटिश सरकार झुक गई।
तीन जून, 1970 में हरिबोल बाबा का निधन हुआ तो तब से लगातार 52 सालों में चौबीसों घंटे का कीर्तन चल रहा है। चार सौ गांवों में एक का नंबर एक साल बाद आता है। ग्रामीण जीवन में ऐसे ही बदलावकारी आविष्कारों, इनोवेशन, तकनीक व बिजनेस के तौर-तरीकों की खोज करने के मकसद से उत्तराखंड स्थित सिखों के तीर्थ नानकमत्ता से बीती एक जून 2022 को एक शोधयात्रा शुरू हुई। यात्रा चंडीगढ़ होते हुए बुधवार को पंजाब के रोपड़ इलाके में प्रवेश कर गई जिसका नेतृत्व रोहतक, हरियाणा के कमलजीत कर रहे हैं। दुनिया के सत्तर देशों में फैले व आईआईएम अहमदाबाद के प्रो. अनिल गुप्ता के नेतृत्व में संचालित संगठन ‘हनी-बी नेटवर्क’ के निर्देशन में संचालित इस शोधयात्रा का मकसद गांवों-कस्बों में हुए आविष्कारों, इनोवेशन की पहचान, परंपरागत ज्ञान का पता लगाना और उन्हें पुरस्कृत करना है।
इस संस्था की स्थापना 1998 में हुई थी। इस शोधयात्रा का मकसद तकनीकी, कृषि व सामाजिक आविष्कारों यानी इनोवेशन का पता लगाना है। सामाजिक आविष्कारों का जिक्र करते हुए कमलजीत बताते हैं कि मुजफ्फरनगर स्थित पौराणिक तीर्थ शुक्रताल में स्वामी कल्याण देव ने जनसंसाधनों के जरिये 130 कालेज खोले। इनसे पढ़कर लाखों लोग आज हमारे सिस्टम को समृद्ध कर रहे हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के रामपुर में स्थित बेनजीर फार्म में पचास साल की मेहनत के बाद एक ऐसा पिलखन का पेड़ तैयार किया गया है, जिसके नीचे 1500 लोग आराम से बैठ सकते हैं। भारतीय ग्रामीण परिवेश में व्यक्ति व परिवार की पहल से व्यावहारिक जीवन की ऐसी अद्भुत खोजें हुई हैं जिनसे लाखों लोगों के जीवन में बदलाव आया है। बता दें कि 44 वर्षीय कमलजीत की यह बारहवीं यात्रा है। यात्रा में पैदल चलते हैं। यहां चंडीगढ़ पहुंचकर आविष्कारों से पुरस्कार पाने वाले तीन लोग उनकी यात्रा का हिस्सा बनेंगे। ऐसे ही हर जिले में कुछ लोग उनके साथ जुड़ते हैं। ‘हनी बी नेटवर्क’ से उनका कॉर्डिनेशन है। तकरीबन हर साल जब मन करता है सामाजिक चेतना की यात्राओं पर निकल जाते हैं। परिवार में पत्नी व दो बच्चे हैं। पूछने पर कि क्या घर वाले नाराज नहीं होते, कहते हैं कि धीरे-धीरे उनको ट्रेंड किया है। कमलजीत किसानों को जागरूक करने के लिये ‘किसान संचार’ सूचना सेवा चलाते हैं जिसमें किसानों को मंडी, पशु पालन, मौसम की प्रमाणिक जानकारी मुफ्त उपलब्ध कराते हैं। रोहतक स्थित कृषि विश्वविद्यालय से फूड टेक्नालॉजी में एमएससी करने वाले कमलजीत को तीसरे सेमेस्टर में अहसास हुआ कि गलत विषय चुन लिया। यहां तो हर चीज आयुर्वेद के विरुद्ध है। मांसाहारी अवयवों से खाद्य पदार्थ तैयार करने पर लगा कि यह तो राक्षसी पढ़ाई है। फिर ऑर्गेनिक फॉर्मिंग में आए। एलएलएम तक की पढ़ाई की और अभी भी पढ़ाई जारी है। चौबीस किसान कंपनियां बनायीं, जो आज भी किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत कर रही हैं। यह शोधयात्रा दस जुलाई को रियासी, जम्मू में समाप्त होगी।
एक से एक नयी खोजें
मुरादाबाद के सरकड़ गांव के अरेंद्र बरगोटी ने व्यावसायिक रूप में वर्मी वॉश तैयार करने का अनूठा तरीका निकाला है जो लाखों लोगों को रोजगार दे सकता है। दरअसल, केंचुए के पसीने से बनने वाले इस लिक्विड फर्टीलाइजर का ऑर्गेनिक खेती में महत्वपूर्ण योगदान है। अरेंद्र ने सबमर्सिबल पंप की जाली को थैला बनाकर उनमें वर्मी कंपोस्ट व केंचुओं को रखकर पचासों बाल्टियों को बोतलों से आपस मे जोड़ा है। रुद्रपुर के किसान गुरप्रीत सिंह ने अपनी फसल के एसेन्स से, मसलन वह स्ट्राबरी पैदा करते हैं तो उसका एसेन्स, लेमन ग्रास व मेंगो शेक के नेचुरल फ्लेवर बनाये। इसकी विदेशों में भी बड़ी मांग है। इसी तरह उत्तराखंड के रुद्रपुर में चंद्रेश्वर तिवारी के परिवार ने 120 साल से जमीन का बंटवारा नहीं किया। परिवार में खेती करने के इच्छुक को जमीन दे देते हैं बाकी नौकरी करने चले जाते हैं। यह छोटी जोत की समस्या का अच्छा समाधान है। शोधयात्रा के दौरान रामपुर में आचार्य बालेंदु प्रकाश मिले, जो अपनी रसशाला चलाते हैं। उनके पास दुनिया में दुर्लभ एंडोक्राइन कैंसर के रोगियों के इलाज में मददगार नुस्खा है। वह सिद्ध मकरध्वज दवा तैयार करते हैं, इसमें ढाई सौ ग्राम सोना पारे में घुल जाता है। खरल में एक सप्ताह लगता है। फिर गंधक में मिलाते है। यह क्रिया एक सप्ताह दिन-रात चलती है। मूल स्वभाव में पारा व सोना घातक पदार्थ हैं लेकिन कैंसर में दवा बन जाते हैं। उत्तराखंड के उधमसिंह नगर के शक्तिफार्म में एक भी आवारा जानवर नजर नहीं आता। गांव वाले बताते हैं कि हम कानून नहीं, मर्यादा से चलते हैं। गाय को सचमुच माता मानते हैं। पूरी उम्र घर में रखते हैं। रूद्रपुर में 19 साल का मोहम्मद कैफ भी यात्रा के दौरान मिला, जिसके पास नौ साल का कार्य अनुभव है, वह महज मैट्रिक पास है और रोज चार हजार रुपये कमाता है। उसने अपनी ट्रैक्टर-ट्राॅली में जड़ी-बूटियों के साथ बीज पीसने की मशीन लगाई है। लोग बाइपोस्ट जड़ी-बूटियां मंगवाते हैं।