पुरुषोत्तम शर्मा/हप्र
सोनीपत, 28 जनवरी
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुए उत्पात के बाद किसान आंदोलनकारी डैमेज कंट्रोल में जुटे हुए हैं। बृहस्पतिवार को किसानों ने
फिर तिरंगा मार्च निकाला और तिरंगे को सर्वोपरि बताया। किसानों ने कुंडली बाॅर्डर से लेकर केजीपी-केएमपी के जीरो प्वाइंट तक मार्च निकाला। साथ ही किसान लगातार सफाई देते रहे कि लालकिले की घटना से उनका कोई संबंध नहीं है। सिंघु बाॅर्डर पर निकले फ्लैग मार्च में तिरंगे को आगे रखा गया, जबकि इसके बाद निशान साहिब व किसान यूनियन के झंडे लहराये गए। इस दौरान पंजाब-हरियाणा में भाईचारे के नारे लगाए गए जबकि सरकार पर यह भाईचारा तोड़ने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया।
फ्लैग मार्च की अगुवाई संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख दर्शनपाल व गुरनाम सिंह चढूनी समेत सभी किसान नेताओं ने की। यहां करीब 9 किलोमीटर तक किसानों ने फ्लैग मार्च निकाला। गौरतलब है कि तीन कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर किसान 2 माह से डटे हुए हैं। 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में कई जगह न केवल हिंसक झड़पें हुई बल्कि लाल किले पर निशान साहिब का झंडा भी लगाया गया। इसके बाद देशभर में किसान संगठनों की आलोचना की जा रही है।
वहीं, ट्रैक्टर परेड में भाग लेने वाले किसानों ने धरनास्थल पर रूके बिना घर वापसी कर दी। साथ ही धरनारत किसानों ने भी लगातार घर लौटने का सिलसिला शुरू कर दिया है। हालांकि, बृहस्पतिवार को यह सिलसिला कुछ हद तक कम हुआ है। किसान नेता एक तरफ जहां मुख्य मंच से किसानों में लगातार जोश भरने का प्रयास कर रहे हैं और वापस नहीं लौटने काे कह रहे हैं।
किसानों का वापस लौटने का सिलसिला तेज होता देख कुछ युवाओं ने कमान संभाली और किसानों को रोकने के लिए भावुक अपील की। युवाओं व जत्थेदारों ने किसानों को कहा कि यदि वे अब चले गए तो वही होगा जो सरकार चाहती है। सरकार किसान आंदोलन को तोड़ना चाहती है। जत्थेदारों ने हाथों में तख्तियां लेकर सिखों के इतिहास का हवाला दिया और किसानों को रोकने के लिए हाथ भी जोड़े। इस दौरान कुछ तक जत्थेदार कामयाब भी हुए।
बहुत से किसानों के ट्रैक्टर-ट्रालियों को वापस मुड़वाया गया। इस दौरान वापस लौटने वाले किसानों का धन्यवाद भी किया। इस समय कुंडली बाॅर्डर पर यूं तो किसानों की भीड़ काफी छंट चुकी है, लेकिन अभी भी यहां पर हजारों की संख्या में ट्रैक्टर-ट्राली व किसान मौजूद हैं। यह बात अलग है कि किसानों में अब पहले की तरह जोश की कमी है और लंगर भी सीमित हो गया है।