कुरुक्षेत्र, 16 अप्रैल (हप्र)
1947 में हुए बंटवारे का दर्द आज भी हिंदुस्तान से पाकिस्तान और पाकिस्तान से हिंदुस्तान आने वाले लोगों के दिलों में जिंदा है। विभाजन के उस दर्दनाक मंजर को भूल पाना सम्भव नहीं है। विस्थापन की टीस आज भी बुजुर्गों के मन को अंदर तक झकझोर देती है। ऐसी ही एक झलक हरियाणा कला परिषद द्वारा आयोजित नाट्य मेला की चौथी शाम में ‘नाटक मिट्टी दा बावा’ में देखने को मिली।
नाटक मिट्टी दा बावा एक जंगल के दृश्य से प्रारम्भ होता है, जहां लड़ाकू जहाजों के शोर के बीच एक हिंदुस्तानी सिपाही गुरबख्श सिंह जख्मी हालत में पहुंचता है। उसी वक्त एक पाकिस्तानी सिपाही शाहनवाज खान भी वहां आकर उस पर धावा बोल देता है। दोनों में लड़ाई होती है और दोनों के गोला-बारूद पहले ही खत्म होने के कारण दोनों थक हारकर बैठ जाते हैं। इसी दौरान कुछ जंगली लोग दोनों सिपाहियों पर हमला कर देते हैं और इसी मुठभेड़ में एक जंगली मारा जाता है। बाकी जंगली डरकर भाग जाते हैं। अकेले रह जाने के कारण हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी सिपाही आपस में बातचीत शुरू करते हैं और देश के विभाजन का दोष एक-दूसरे को देते रहते हैं।
विश्व रंगमंच दिवस पर नाट्य मेला
आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित नाट्य मेले में प्रत्येक सप्ताह कला कीर्ति भवन में नाटकों का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी केएल थियेटर, सिरसा के कलाकारों द्वारा पाली भूपिंद्र का लिखा और कर्ण लड्डा के निर्देशन में तैयार नाटक मिट्टी दा बावा मंचित किया गया। इस दौरान साहित्यकार चंद्रशेखर शर्मा, रंगकर्मी शिवकुमार किरमच, हरियाणा कला परिषद के कार्यालय प्रमुख धर्मपाल गुगलानी, ललित कला समन्वयक सीमा काम्बोज ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। मंच का संचालन मीडिया प्रभारी विकास शर्मा द्वारा किया गया।