प्राचीन सुघ टीला पर अतिक्रमण का मामला राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग पहुंचा
स्थानीय लोगों का आरोप है कि टीले पर कब्रिस्तान का विस्तार और अवैध गतिविधियों से प्राचीन संरचना को नुकसान हो रहा है। हालांकि हरियाणा पुरातत्व विभाग की उपनिदेशक डॉ. बिनानी भट्टाचार्य का दावा है कि कब्रिस्तान संरक्षित क्षेत्र से बाहर है। इस बयान को विरासत कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने खारिज करते हुए कहा है कि निर्माण कार्य सीधे संरक्षित हिस्से को प्रभावित कर रहा है।
बौद्ध संगठन तिब्बती कॉलोनी (अंबाला कैंट) और जींद के एडवोकेट सुलेख मानव बौद्ध ने इस संबंध में पर्यटन एवं विरासत मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा को पत्र लिखकर विभागीय उदासीनता पर कड़ा विरोध जताया है। प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा को भी ज्ञापन भेजा है। नेताओं का कहना है कि यह केवल सीमाओं का विवाद नहीं, बल्कि एक अपूरणीय धरोहर के अस्तित्व का सवाल है।
इतिहासकारों के अनुसार, 1862 में ब्रिटिश पुरातत्वविद अलेक्जेंडर कनिंघम ने सुघ टीले का उल्लेख किया था। 19वीं सदी के गजेटियर में यहां 39 मध्यकालीन सती स्मारक दर्ज थे, जिनमें से अब केवल पांच ही शेष हैं। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि विभाग की ढिलाई के कारण संरक्षित क्षेत्र में अवैध खेती, खनन और मशीनरी का उपयोग जारी है।
मामले को लेकर बौद्ध और अल्पसंख्यक संगठनों ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू से भी मुलाकात करने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो सुघ टीला जैसी धरोहर हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी।