दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 11 जुलाई
फरीदाबाद में गलियों व पुलियाओं की लम्बाई-चौड़ाई एक समान है। एक इंच का भी इनमें अंतर नहीं है। सात वार्डों – वार्ड 34 से लेकर 40 तक में तो कम से कम स्थिति यही है। इन वार्डों की गलियों की लम्बाई-चौड़ाई एक समान होने का खुलासा भी इसलिए हो गया क्योंकि स्टेट विजिलेंस ब्यूरो की जांच में यह बात पकड़ में आ चुकी है। अभी निगम के दस्तावेज खंगाले जाने बाकी हैं। बहुत संभव है कि निगम के अधिकांश वार्डों की गलियों व पुलियाओं के निर्माण व मरम्मत में इसी तरह का खेल हुआ हो।
सरकार से लाइसेंस लेकर कालोनियां विकसित करने वाले बिल्डरों के प्रोजेक्ट में भी शायद सभी गलियों की लम्बाई-चौड़ाई एक समान न हो, लेकिन फरीदाबाद नगर निगम के अधिकारियों ने ठेकेदारों के साथ मिलीभगत करके इस असंभव काम को भी संभव कर दिखाया है। यहां तक ही बात रहती तो भी ठीक था लेकिन निगम अधिकारियों ने इन गलियों व पुलियाओं के निर्माण के लिए करोड़ों रुपये भी जारी कर दिए, लेकिन ग्राउंड पर ये काम कभी हुए ही नहीं।
दैनिक ट्रिब्यून के पास मौजूद दस्तावेजों एवं स्टेट विजिलेंस ब्यूरो द्वारा दर्ज की गई एफआईआर से साफ है कि नियमों को तोड़ने में निगम के अधिकारियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी। विजिलेंस ने भी स्वीकार किया है कि निगम द्वारा इन सात वार्डों में गलियों में इंटर-लॉकिंग टाइल, पुलिया निर्माण, स्टोन मैटल सप्लाई व गलियों-नालियों की मरम्मत में पूरी तरह से धांधली हुई है। जितने भी भुगतान किए गए वे सभी फर्जी हैं। बिना काम के निगम का पैसा ठेकेदारों को दिया गया है।
वार्ड नंबर-37 के पार्षद दीपक चौधरी की लिखित शिकायत के बाद यह मामला खुला है। चौधरी ने इस बाबत सरकार को पत्र भी भेजा था। इतना ही नहीं, मुख्य सचिव की ओर से भी इस बाबत विजिलेंस ब्यूरो को पत्र लिखा गया। इसके बाद विजिलेंस ने मुकदमा दर्ज करके जांच की। एफआईआर में स्पष्ट है कि वार्ड नंबर-34 से लेकर 40 तक में विभिन्न गलियों में इंटर लॉकिंग टाइल लगाने के लिए टेंडर जारी करने की बजाय कोटेशन के आधार पर ठेकेदार सतबीर सिंह व उसकी अलग-अलग कंपनियों को एक ही रेट में अलग-अलग कार्यों के वर्क आर्डर जारी कर दिए गए। इतना ही नहीं, टेंडर से बचने और कोटेशन के जरिये काम करवाने के लिए अधिकारियों ने बड़े कार्यों को भी टुकड़ों में बांट दिया।
सबसे हैरानी की बात यह है कि गलियों में इंटर-लॉकिंग टाइल का वर्क आर्डर जारी करते समय यह ध्यान भी नहीं रखा गया कि पहले गलियों की पैमाइश तो करवा ली जाए। स्थिति यह है कि इन वार्डों में जितनी भी गलियों में टाइल का ठेका दिया गया, उनकी लम्बाई व चौड़ाई एक समान ही कागजों में दर्शाई गई। बात यहीं खत्म नहीं हुई। ठेकेदार को इन कार्यों की पेमेंट भी कर दी गई, लेकिन ये काम ग्राउंड पर हुए ही नहीं।
इसी तरह से इन वार्डों में स्टोन मैटल की सप्लाई का ठेका भी सतबीर सिंह से जुड़ी कंपनियों को ही मिला। मौके पर स्टोन की सप्लाई हुए बिना ही पेमेंट भी हो गई। विजिलेंस ने भी माना है कि यह संभव ही नहीं है कि सभी वार्डों में समान स्टोन मैटल की आवश्यकता एक साथ पड़े और उनका भुगतान भी एक समान हो। एक दो नहीं बल्कि 28 भुगतान एक समान कार्य के लिए किए गए।
निगम अधिकारियों ने इन वार्डों में पुलिया निर्माण के लिए भी सतबीर सिंह की कंपनियों को ही 4 लाख 35 हजार 170 रुपये के हिसाब से 28 से अधिक कार्यों का ठेका दिया गया। ये ठेके सतबीर सिंह की चार कंपनियों को कोटेशन के बेस पर ही दे दिए गए।
इसी तरह से इन सातों वार्डों में नालियों के निर्माण में फर्जीवाड़ा किया गया। सतबीर सिंह की चार कंपनियों को नालियों के निर्माण के लिए 1 करोड़ 20 लाख 82 हजार के हिसाब से भुगतान किया गया। चारों ही कंपनियों को यह भुगतान बिना कार्यों के लिए ही कर दिया गया।
मिलीभगत से किया घोटाला
नगर निगम अधिकारियों व कर्मचारियों ने सतबीर सिंह ठेकेदार व उसकी फर्मों के साथ मिलीभगत करके इस घोटाले को अंजाम दिया। विजिलेंस रिपोर्ट की मानें तो सतबीर सिंह ठेकेदार व उसकी कंपनियों को विभिन्न कार्यों के लिए एक ही समान राशि का कोटेशन के आधार पर भुगतान किया। बड़े कार्यों को टुकड़ों में बांटा गया ताकि टेंडर जारी करने की जरूरत न पड़े। यह पीडब्ल्यूडी कोड के नियमों का भी उल्लंघन है।
नहीं मिली मेजरमेंट बुक
गौरतलब है कि एक नगर निगम द्वारा करवाए जाने वाले विकास कार्यों का पूरा लेखा-जोखा मेजरमेंट बुक में होता है। अधिकारियों ने विजिलेंस को यह बुक भी उपलब्ध नहीं करवाई। इतना ही नहीं, डब्ल्यूएमएस सॉफ्टवेयर में भी इंद्राज का कोई रिकार्ड नहीं मिला। सतबीर सिंह ठेकेदार की सभी फर्मों का एड्रेस समान है और एक ही दिन में ये हासिल की गईं। एफआईआर में इस बात का भी जिक्र है कि सतबीर सिंह ठेकेदार और निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों ने मिलीभगत करके सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया है। ठेकेदार व निगम के अधिकारियों को जब ग्राउंड पर इन कार्यों का निरीक्षण करवाने को कहा गया तो वे इसमें भी फेल रहे। यह संभव इसलिए नहीं था क्योंकि जिन कार्यों का भुगतान किया गया, वे ग्राउंड पर हुए ही नहीं थे।