संसद के माॅनसून सत्र के निर्धारित समापन से एक दिन पहले सदन में अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला। गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार और लगातार 30 दिन हिरासत में रखे जाने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को पद से हटाने के प्रावधान वाले तीन विधेयक 20 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में पेश किए जाने के दौरान विपक्षी सांसदों ने विरोध करते हुए सदन के वेल में आकर जबर्दस्त हंगामा किया। कई सांसदों ने अमित शाह का रास्ता रोका, विधेयक की प्रतियां फाड़कर हवा में उछालीं। कांग्रेस सांसद गुरजीत सिंह औजला ने स्पीकर ओम बिरला की कुर्सी के सामने लगे लकड़ी के पैनल पर हाथ मारा। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि विपक्ष और सत्ता पक्ष के सदस्यों के बीच धक्का-मुक्की हो जाएगी। इस दौरान मंत्री किरेन रिजिजू, रवनीत बिट्टू, एसपीएस बघेल और सांसद अनुराग ठाकुर शाह को कवर करते दिखे। स्थिति बिगड़ती देख सदन स्थगित कर दिया गया। एक घंटे बाद जब कार्यवाही फिर से शुरू हुई, तो अमित शाह पिछली सीटों पर जाकर बैठे।
राज्यसभा में भी, जब 21 अगस्त को शाह ने इसी विधेयक का ज़िक्र किया तो विपक्ष के नारों ने उन्हें सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में अपनी गिरफ़्तारी की याद दिला दी। गृह मंत्री ने पलटवार करते हुए कहा कि गिरफ़्तारी से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। विधेयकों के गुण-दोषों के अलावा, हाल ही में समाप्त हुए मानसून सत्र के अधिकांश समय में घटित हुई अशोभनीय घटनाओं ने विरोधी खेमों के बीच गहरी और बढ़ती हुई खाई का संकेत दिया।
अविश्वास इतना ज्यादा था कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले पूरे विपक्षी दल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा प्रत्येक सत्र के अंत में सदन के नेताओं के लिए आयोजित की जाने वाली पारंपरिक चाय का भी बहिष्कार कर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगी राजनाथ सिंह, अमित शाह और एनडीए के सहयोगी बिरला के निमंत्रण पर आए। लेकिन राहुल गांधी, अखिलेश यादव, अभिषेक बनर्जी और विपक्ष के अन्य दिग्गजों के अनुपस्थित रहने के कारण यह तस्वीर अधूरी रही। संसद के मॉनसून सत्र के दौरान दोनों सदनों में पूरे सत्र के दौरान व्यवधान बना रहा और उपलब्ध 120 घंटों में से मुश्किल से 37 घंटे ही काम हो पाया।गतिरोध सदन में बिहार मतदान सूची संशोधन पर चर्चा करने की विपक्ष की मांग को अस्वीकार करने पर केंद्रित था। सरकार ने इसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि इस पर चर्चा नहीं हो सकती, क्योंकि एक केंद्रीय मंत्री चुनाव आयोग जैसी स्वतंत्र संवैधानिक संस्था द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों पर प्रतिक्रिया नहीं दे सकता।
टकराव की स्थिति के बीच उस दौर की याद आ गई, जब प्रतिद्वंदियों को विरोधी नहीं माना जाता था। भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार और विपक्ष के बीच एक कार्यकारी रिश्ता था। लंबे समय सांसद रहे भाजपा के अरुण जेटली और सुषमा स्वराज और कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणब मुखर्जी और गुलाम नबी आज़ाद जैसे नेताओं की विपक्ष के साथ तालमेल बनाने की क्षमता की भी सराहना की जाती रही है। पांच बार सांसद रहे एक सांसद ने कहा कि ऐसा कभी नहीं हुआ, जब दोनों पक्षों को एक कप चाय भी साझा करने में मुश्किल हुई हो।
विभिन्न दलों के राजनेता इस बात पर भी चर्चा करते हैं कि कैसे 2017 में वित्त मंत्री के रूप में जेटली ने विवादास्पद वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर आम सहमति बनाई, जो मोदी युग का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार था। कई सांसदों का कहना है कि 17 साल तक ठंडे बस्ते में पड़ा जीएसटी, जेटली के बिना संभव नहीं होता, क्योंकि दिवंगत वित्त मंत्री ने व्यापक विपक्ष को समझाने का बहुत अच्छा तरीका अपनाया था। कई पुराने और नये सांसदों का मानना है कि आज की राजनीति में ऐसे नेताओं की कमी होती जा रही है, जो विवादों को सुलझा सकें।
उदाहरण के लिए, लोकसभा और राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समितियों (बीएसी) की बैठकों में बनी आम सहमति इन दिनों आसानी से टूट रही है।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू का कहना है कि लोकसभा की कार्य मंत्रणा समितियों (बीएसी) के दौरान सरकार के विधायी एजेंडे पर विपक्ष ने वादा किया था कि वे अपनी सीटों से इन विधेयकों का विरोध करेंगे, लेकिन सदन के वेल में नहीं जाएंगे।
मॉनसून सत्र के दौरान दोनों सदनों ने 15 विधेयक पारित किए गए, लेकिन उन विधेयकों पर संसदीय बहस नहीं हो पाई, क्योंकि व्यापक विपक्ष ने एसआईआर चर्चा से इनकार किए जाने पर विरोध जताया। बताया जा रहा है कि स्पीकर ओम बिरला ने गतिरोध तोड़ने के लिए सभी दलों के नेताओं को बुलाया और व्यक्तिगत रूप से भी उनसे बात की।